फिर आ गए रनिल विक्रमसिंघ
- डॉ. वेदप्रताप वैदिक
श्रीलंका के राष्ट्रपति-चुनाव में रनिल विक्रमसिंघ की विजय पर उनके दोनों प्रतिद्वंदी तो चुप हैं लेकिन उनके विरुद्ध राजधानी कोलंबो में प्रदर्शन होने शुरू हो गए हैं। आमतौर पर गणित यह था कि राजपक्ष-परिवार की सत्तारूढ़ पार्टी के नाराज सदस्य रनिल के विरुद्ध वोट देंगे और संसद किसी अन्य नेता को राष्ट्रपति के पद पर आसीन कर देगी लेकिन रनिल को स्पष्ट बहुमत मिल गया है।
इसका अर्थ यही है कि एक तो सत्तारूढ़ दल में दरार जरूर पड़ी है लेकिन वह इतनी चौड़ी नहीं हुई कि पार्टी-उम्मीदवार उसमें डूब जाए और दूसरा यह कि प्रधानमंत्री रहते हुए रनिल विक्रमसिंघ ने पिछले कुछ हफ्तों में ही भारत और अनेक अंतरराष्ट्रीय संगठनों को इतना प्रेरित कर दिया था कि श्रीलंका को अरबों रु. की मदद आने लगी थी।
वैसे भी रनिल छह बार श्रीलंका के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। इतने अनुभवी नेता के अब राष्ट्रपति बनने पर शायद श्रील...