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राम भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रतीक

राम भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रतीक

अवर्गीकृत
- हृदयनारायण दीक्षित सत्य, शिव और सुन्दर भारतीय संस्कृति के मूल तत्व हैं। भारतीय राष्ट्र का उद्भव सांस्कृतिक भाव भूमि में ही हुआ था। प्रकृति के प्रति आत्मीय भाव इस संस्कृति की विशेषता है। भारतीय संस्कृति उदात्त है। इस विशाल देश में यहां अनेक भाषाएं और अनेक बोलियां हैं। अनेक भाषाओं और बोलियों के बावजूद यहां सांस्कृतिक एकता है। सभ्यता राष्ट्र की देह है। संस्कृति प्राण है। यह कला, गीत, संगीत, स्थापत्य आदि अनेक रूपों में व्यक्त होती है। सबसे खास बात है भारतीय संस्कृति में विश्व एक परिवार है। 'वसुधैव कुटुंबकम' के सूत्र में समूचा विश्व परिवार जाना गया है। स्वाधीनता संग्राम सांस्कृतिक नवजागरण था। यूरोप के पुनर्जागरण से भिन्न था। ऋग्वेद में सभी दिशाओं से ज्ञान प्राप्ति की स्तुति है। काव्य साहित्य और स्थापत्य संस्कृति की अभिव्यक्ति रहे हैं। सभी भारतीय भाषाओं में राष्ट्र का सांस्कृतिक प्रवाह प्रकट...
भारत के तीन स्वप्न राम, कृष्ण और शिव

भारत के तीन स्वप्न राम, कृष्ण और शिव

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- हृदयनारायण दीक्षित श्रीराम भारत के मन का धीरज हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम भी हैं। भारत की अनेक भाषाओं में रामकथा लिखी गई है। दक्षिण भारत में ऋषि कंबन ने रामकथा लिखी है। पहली रामकथा महर्षि वाल्मिकि ने लिखी थी। इसे रामायण की संज्ञा मिली। वाल्मीकि परंपरा में आदिकवि हैं। मध्य काल में महाकवि तुलसीदास ने रामचरितमानस लिखी। रामचरितमानस में प्राचीन दर्शन है। समाज विज्ञान है। भक्ति का अथाह सागर है। ऐसी लोकप्रिय पुस्तक दुनिया के किसी भी देश में नहीं मिलती। भारत के गांव-गांव रामचरितमानस पढ़ी और गायी जाती है। डॉ. राम मनोहर लोहिया समाजवादी थे। उन्होंने 'राम, कृष्ण और शिव' में राम के व्यक्तित्व पर तथ्यपरक भावप्रवण टिप्पणी की है। लोहिया ने लिखा है रामायण के सभी पात्र अश्रुलोचन हैं। सभी पात्र आंसू बहाते दिखाई पड़ते हैं। उन्होंने राम, कृष्ण और शिव को भारत के तीन स्वप्न बताया था। राम के व्यक्तित्व का केंद्र मर...