जो टूटा न हो,उसे जोड़ने का क्या औचित्य?
- सियाराम पांडेय 'शांत'
भारत ने महात्मा गांधी की दांडी यात्रा से लेकर आज तक अनेक राजनीतिक यात्राएं देखी हैं। दांडी यात्रा को अपवाद मानें तो शेष राजनीतिक यात्राएं देशहित के कितनी करीब रहीं,उससे देश का कितना भला हुआ,यह किसी से छिपा नहीं है। चाहे 1982 की एनटी रामाराव की चैतन्य रथम यात्रा रही हो या फिर लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से शुरू हुई राम रथयात्रा। वाई.एस.राजशेखर रेड्डी की 2004 की यात्रा रही हो या फिर उनके पुत्र जगह मोहन रेड्डी की 2017 की राजनीतिक यात्रा और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की यात्रा,सबके अपने राजनीतिक अभीष्ठ रहे हैं। इसका लाभ उक्त राजनीतिक दलों को तो मिला लेकिन जनता को तो छलावे के सिवा कुछ भी नहीं मिला। ऐसे में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कोई बड़ा निर्णायक चमत्कार करेगी, इसकी परिकल्पना तो नहीं की जा सकती।
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी इस यात्रा में भारत को जोड़े...