Friday, November 22"खबर जो असर करे"

Tag: Rahul Gandhi

जो टूटा न हो,उसे जोड़ने का क्या औचित्य?

अवर्गीकृत
- सियाराम पांडेय 'शांत' भारत ने महात्मा गांधी की दांडी यात्रा से लेकर आज तक अनेक राजनीतिक यात्राएं देखी हैं। दांडी यात्रा को अपवाद मानें तो शेष राजनीतिक यात्राएं देशहित के कितनी करीब रहीं,उससे देश का कितना भला हुआ,यह किसी से छिपा नहीं है। चाहे 1982 की एनटी रामाराव की चैतन्य रथम यात्रा रही हो या फिर लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से शुरू हुई राम रथयात्रा। वाई.एस.राजशेखर रेड्डी की 2004 की यात्रा रही हो या फिर उनके पुत्र जगह मोहन रेड्डी की 2017 की राजनीतिक यात्रा और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की यात्रा,सबके अपने राजनीतिक अभीष्ठ रहे हैं। इसका लाभ उक्त राजनीतिक दलों को तो मिला लेकिन जनता को तो छलावे के सिवा कुछ भी नहीं मिला। ऐसे में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कोई बड़ा निर्णायक चमत्कार करेगी, इसकी परिकल्पना तो नहीं की जा सकती। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी इस यात्रा में भारत को जोड़े...

भारत-जोड़ो यात्रा की नौटंकी में आत्म प्रचार

अवर्गीकृत
- डॉ. वेदप्रताप वैदिक कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा अभी तो केरल में ही चल रही है। राहुल गांधी इसका नेतृत्व कर रहे हैं। इस यात्रा के दौरान भीड़-भाड़ भी ठीक-ठाक ही है। सवाल यह भी है कि देश के जिन अन्य प्रांतों से यह गुजरेगी, क्या वहां भी इसमें वैसा ही उत्साह दिखाई पड़ेगा, जैसा कि केरल में दिखाई पड़ रहा है? केरल में कांग्रेस ही प्रमुख विरोधी दल है और खुद राहुल वहीं से लोकसभा सदस्य हैं। केरल में कांग्रेस की सरकार कई बार बन चुकी है। उसकी टक्कर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से हुआ करती है लेकिन इस यात्रा के दौरान सारा जोर भाजपा के विरुद्ध है जबकि केरल में भाजपा की उपस्थिति नगण्य है। दक्षिण के जिन अन्य राज्यों में भी यह यात्रा जाएगी, क्या कांग्रेस का निशाना भाजपा पर ही रहेगा? यदि भाजपा को सत्तामुक्त करना ही इस यात्रा का लक्ष्य गुजरात में होना चाहिए। मगर गांधी और सरदार पटेल के गुजरात में भी कांग्रेस ...

बिखरती कांग्रेस और राहुल पर उठते सवाल

अवर्गीकृत
- ऋतुपर्ण दवे क्या कांग्रेस एक बार फिर और कमजोर हो गई? ऐसे सवाल राजनीतिक गलियारों में अब नए नहीं है और न ही कोई सनसनी फैलाते हैं। कांग्रेस छोड़ने वाले हालिया नेताओं में से लगभग 90 प्रतिशत बल्कि उससे भी ज्यादा ने राहुल गांधी की लीडरशिप पर सवाल उठाया है। गुलाम नबी आजाद के आरोप हैरान नहीं करते हैं। पहले भी कांग्रेस से अलग होते वक्त या होकर कई और नेताओं ने तब की लीडरशिप पर सवाल उठाए थे। ऐसे में ये सवाल बेमानी सा लगता है कि क्या वाकई राहुल अनुभवहीन हैं या वजह कुछ और है? थोड़ा पीछे भी देखना होगा। 1967 के पांचवें आम चुनाव में ही कांग्रेस को पहली बार जबरदस्त चुनौती मिली थी जिसमें पार्टी 520 लोकसभा सीटों में 283 जीत सकी। कांग्रेस का यह तब तक का सबसे खराब प्रदर्शन था। लेकिन इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कांग्रेस में अंर्तकलह शुरू हो गई। इसी कलह के चलते महज दो बरस यानी 1969 में कांग्रेस (...

कांग्रेस मुक्त भारत का सपना साकार करते राहुल गांधी

अवर्गीकृत
- आर.के. सिन्हा कांग्रेस से देश को उम्मीद थी कि यूपीए सरकार के सन 2014 में सत्ता से मुक्त होने के बाद वह एक सशक्त विपक्ष की भूमिका को सही तरह से निभायेगी। वह केन्द्र में एनडीए सरकार के कामकाज पर पैनी नजर रखते हुये उसकी कमियों पर उसे घेरेगी और उपलब्धियों पर कभी-कभार उसकी पीठ भी थपथपा देगी। यही तो लोकतंत्र है। पर यह हो न सका। राहुल गांधी ने कांग्रेस को एक नकारा और थकी हुई पार्टी बनाकर रख दिया है। कांग्रेस में गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा जैसे पुराने नेता आलाकमान के फैसलों से निराश हैं। गुलाम नबी आजाद और आनन्द शर्मा के चुनाव समितियों के अध्यक्ष पदों से दिए गए इस्तीफों ने यह दर्शा दिया है कि पार्टी में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। दशकों से पार्टी की सेवा करने वाले आजाद और शर्मा जैसे नेताओं को भी अब कांग्रेस में घुटन महसूस हो रही है। पिछले लगभग दो-तीन वर्षों से कांग्रेस लगभग नेतृत्व विहीन-सा हो...