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खराब न होने दें अपनी माटी का स्वास्थ्य

खराब न होने दें अपनी माटी का स्वास्थ्य

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- अरुण कुमार दीक्षित हम सबके जीवन में माटी का बड़ा महत्व है। चाहे हम भारत में हों या दुनिया के किसी भी देश में हों, बात जब माटी की होगी तब भारत का ही नाम लेते हैं। अपनी माटी अपनी ही है। हमारे लोकजीवन में बार-बार माटी की बात होती है। कथित आधुनिक सोच ने मिट्टी को डस्ट और एलर्जी वाली वस्तु बताना काफी पहले शुरू किया। इससे माटी के प्रति हमारी अवधारणा भी बहुत हद तक प्रभावित हुई है। पहले घर भी माटी के होते थे। आज भी गांवों में माटी के बहुत सारे घर हैं। यह और बात है कि आर्थिक-सामाजिक परिवर्तन के कारण अब पक्के घर अधिक दिखाई देते हैं। माटी के घरों की पुताई माटी से ही होती थी। नीचे माटी, ऊपर माटी, सब तरफ माटी ही प्रयोग होती रही है। घर में गृहस्थी के नाम पर सबसे अधिक माटी के बर्तन होते थे, जिन्हें हम गगरी, घड़ा ,कलश, मटका,सुराही आदि नाम से जानते हैं। अब गांव और नगर दोनों में सुराही के पानी पर चर्च...

सार्वजनिक जीवन में मर्यादा की जरूरत

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- गिरीश्वर मिश्र देश को स्वतंत्रता मिली और उसी के साथ अपने ऊपर अपना राज स्थापित करने का अवसर मिला। स्वराज अपने आप में आकर्षक तो है पर यह नहीं भूलना चाहिए कि उसके साथ जिम्मेदारी भी मिलती है। स्वतंत्रता मिलने के बाद आजादी का स्वाद तो हमने चखा पर उसके साथ की जिम्मेदारी और कर्तव्य की भूमिका निभाने में ढीले पड़ कर कुछ पिछड़ते गए। देश को देने की जगह शीघ्रता और आसानी से क्या पा लें, इस चक्कर में भ्रष्टाचार, भेद-भाव तथा अवसरवादिता आदि का असर बढ़ने लगा। इसीलिए देश के आम चुनाव में कई बार भ्रष्टाचार एक मुख्य मुद्दा बनता रहा। देश की जनता उससे मुक्ति पाने के लिए वोट देती रही है। परन्तु परिस्थितियों में जिस तरह का बदलाव आता गया है उसमें देश की राजनीतिक संस्कृति नैतिक मानकों के साथ समझौते की संस्कृति होती गई। आज की स्थिति में धनबल, बाहुबल, परिवारवाद के साथ राजनीति के किरदारों की अपराध में संलिप्तता किस जोर...