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Tag: Politics

कांग्रेस के ‘‘नादान‘‘ राहुल गांधी पाकिस्तान के समर्थन की राजनीति वहीं जाकर करें : CM डॉ यादव

कांग्रेस के ‘‘नादान‘‘ राहुल गांधी पाकिस्तान के समर्थन की राजनीति वहीं जाकर करें : CM डॉ यादव

देश, मध्य प्रदेश
भोपाल। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव (Chief Minister Dr. Mohan Yadav.) ने कहा कि कांग्रेस (Congress.) के ‘‘नादान‘‘ (राहुल गांधी) पाकिस्तान के समर्थन (Support of Pakistan) से देश में राजनीति करना चाहते हैं। राहुल गांधी (Rahul Gandhi.) को भारत में राजनीति (Politics in India) करना है तो भारत के लोगों का समर्थन लें, अगर उन्हें पाकिस्तान के समर्थन से राजनीति करनी है तो वह भारत में नहीं पाकिस्तान में राजनीति करें। हरियाणा सहित देश भर के हमारे बच्चे सीमा पर पाकिस्तान के साथ अपने खून की अंतिम बूंद तक लड़ते हैं। वोट के खातिर कांग्रेस और राहुल गांधी शहीदों व सैनिकों को अपमानित करने का कार्य करते हैं। राहुल देश का सम्मान न देश में रखते हैं और न ही विदेश में रहते हैं। राहुल गांधी, कांग्रेस और उसके समर्थक दल जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने की मांग करते हैं और पाकिस्तान उसे समर्थन करता है। देश के खिलाफ जान...
सिस्टम को सोचने की जरूरत है

सिस्टम को सोचने की जरूरत है

अवर्गीकृत
- प्रियंका सौरभ पेरिस ओलिंपिक-2024 में सभी देशों को टक्कर देता इकलौता विश्वविजेता देश जापान आज हम सभी के लिए ज्योतिपुंज है। 14 साल का जापानी किशोर गोल्ड मेडल ला रहा है और हम 140 करोड़ का देश एक मेडल पर राजनीति श्रेय लेने की होड़ में वाहवाही कर रहे हैं। हर खिलाड़ी की व्यक्तिगत जीत देश के लिए न्यौछावर है लेकिन हम कहां हैं ये जानना जरूरी है मेडल लिस्ट में। जहां कॉलेज और स्कूल स्टूडेंट्स ओलंपिक मेडल ले आते हैं उनको बचपन से फोकस, जिम्मेवारी और निपुणता कैसे लानी है सिखाया जाता है। आज तक के हर ओलंपिक की यह तस्वीर आप खुद देखिए अब आगे क्या कहूं? एक-एक मेडल के लिए तरसते इस देश में जब हमारे स्टार खिलाड़ी सब कुछ मिलने के बाद राजनीति का स्वाद भी लेना चाहते हैं तो मन खट्टा हो ही जाता है। देश की हालात देखिए ओलंपिक में मेडल के लिए तरसते हैं और कोई एक मेडल जीत जाए तो राजनीतिक लाभ लेने के लिए पैसों की बार...
देश में बढ़ रही कुतर्क की राजनीति

देश में बढ़ रही कुतर्क की राजनीति

अवर्गीकृत
- सुरेश हिंदुस्तानी राजनीति में सकारात्मक दिशा के अभाव में देश को जो नुकसान उठाना पड़ता है, वह भले ही प्रत्यक्ष रूप में दिखाई नहीं दे, लेकिन उससे समाज पर प्रभाव अवश्य ही होता है। अगर यह प्रभाव नकारात्मक चिंतन की धारा के प्रवाह को गति देने वाला होगा तो देश को भी अपने अस्तित्व के लिए जूझना पड़ता है। वर्तमान में जिस प्रकार की राजनीति की जा रही है, उसे भटकाव पैदा करने वाली राजनीति कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इतना ही नहीं, जो विषय राजनीति के नहीं होने चाहिए, उनको भी राजनीतिक दल राजनीति के दलदल में ले जाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि सरकार के किसी भी निर्णय का अपने हिसाब से परिभाषित करना राजनीति का प्रिय विषय बनता जा रहा है। इससे प्रायः मूल विषय बहुत पीछे छूट जाता है और बहस कहीं और चली जाती है। आज के राजनीतिक वातावरण का अध्ययन किया जाए तो यही परिलक्षित होता है कि सभी राजनीतिक दलों के...
प्रधानमंत्री मोदी ने यह सिद्ध किया है कि राजनीति भी एक साधना है

प्रधानमंत्री मोदी ने यह सिद्ध किया है कि राजनीति भी एक साधना है

अवर्गीकृत
- प्रभात झा भारतीय राजनीति में आजादी के बाद सर्वाधिक समय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू रहे। वे लगभग साढ़े सत्तरह साल तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। उसके बाद श्रीमती इंदिरा गांधी जो नेहरू की बेटी रहीं, वे भी पंद्रह साल और तीन सौ पचास दिन प्रधानमंत्री रहीं। भारतीय जनसंघ की स्थापना से भाजपा के अब तक के इतिहास में प्रधानमंत्री के पद पर पहले तेरह दिन, दूसरी बार तेरह महीने और तीसरी बार साढ़े चार वर्ष के करीब स्व. अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री रहे। अपने जीवन में जब वे कानपुर में स्नातकोत्तर और लॉ की पढ़ाई करने गए, तो उसके बाद वे संडीला जो उत्तरप्रदेश में एक स्थान है, वहां कुछ समय के लिए प्रचारक के रूप में रहे। यह कहने में कोई संकोच नहीं कि अटल जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक एवं कुछ समय प्रचारक रहे, ऐसे राजनेता भारत के प्रधानमंत्री बने। उनके कार्यकाल में बात इतनी सी रही कि वे पूर्...
चुनाव के दौरान रंगभेद की राजनीति

चुनाव के दौरान रंगभेद की राजनीति

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- सुरेश हिंदुस्थानी लोकसभा चुनाव के दौरान राजनेताओं के बयान सुनकर ऐसा लगने लगता है कि ये अपनी हदों को पार कर करने लगे हैं। अभी हाल ही में कांग्रेस के नेता सैम पित्रोदा के बयान की मीमांसा की जा रही है। इसका तात्पर्य यही है कि इस नेता ने भारत में भेद पैदा करने के प्रयास किए, जो कभी सफल नहीं होने चाहिए। भारत में जिस प्रकार से सामाजिक विघटन की राजनीति की जा रही है, उससे समाज की शक्ति का लगातार पतन ही हुआ है। कभी तुष्टिकरण तो कभी वोटबैंक की राजनीति के बहाने सामाजिक एकता की राह में अवरोध पैदा करने के प्रयास किये गए, जिसके कारण समाज के कई हिस्से अलग-अलग दुकान खोल कर बैठ गए और इसकी आज की राजनीति ने इसे मुंह मांगा इनाम भी दिया। जिसके कारण भारतीय समाज के बीच जो विविधता की एकता को दर्शाने वाली परंपरा रही, उसकी जड़ों में मट्ठा डालने का अनवरत प्रयास किया गया। यह सभी जानते हैं कि जिस देश का समाज कम...
भाजपा ने राजनीति को सेवा करने का सर्वोत्तम माध्यम बनाया

भाजपा ने राजनीति को सेवा करने का सर्वोत्तम माध्यम बनाया

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- डॉ. आशीष वशिष्ठ देश के राजनीतिक इतिहास में छह अप्रैल का दिन खास अहमियत रखता है। "अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा " भारतीय जनता पार्टी के पहले अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने आज ही के दिन, 1980 में यानी 44 साल पहले, पार्टी की स्थापना के समय ये शब्द कहे थे। शायद उन्होंने यह बात पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए कही होगी लेकिन उस समय पार्टी कार्यकर्ताओं या फिर विपक्षी दलों में शायद ही किसी ने सोचा होगा कि आने वाले दिनों में अटल जी की बातें सही साबित होंगी। 1984 के लोकसभा चुनाव में केवल दो सीटें हासिल करने से लेकर 2019 के चुनाव में 303 सीटें जीतने वाली भाजपा ने अपने इस शानदार सफर में कई उतार-चढ़ाव भी देखे, बड़े झटके भी खाए और मायूसी भी महसूस की। धरातल पर बदलाव लाने के लिए राजनीति सबसे सशक्त माध्यम है। राजनीति के माध्यम से हम समाज के दबे-कुचले लोगों और उपेक्षित समुदायों...
पूर्वोत्तर में कांग्रेस के ‘पराई’ होने के निहितार्थ

पूर्वोत्तर में कांग्रेस के ‘पराई’ होने के निहितार्थ

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- डॉ. रमेश ठाकुर सियासत अपने रंग-ढंग बदलती रहती है जिसकी पटकथा समय लिखता है, जो समय के साथ नहीं बदलता, समय उसे बदल देता है। समय की गति को समझने में कांग्रेस शायद गच्चा खा गई। पूर्वोत्तर से कांग्रेस का तकरीबन बोरिया-बिस्तर बंध चुका है। एक जमाना था, जब पूर्वोत्तर राज्यों में मुल्क के सबसे उम्रदराज सियासी दल ‘कांग्रेस’ का बोलबाला होता था। कांग्रेस के मुकाबले अन्य दल वहां बिल्कुल भी नहीं टिकते थे। चुनावी मौसम में सियासी लहर सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस की ही बहती थी। फिर, चुनाव चाहे पंचायती हो, या लोकसभा का, सभी में पार्टी की विजयी सुनिश्चित हुआ करती थी। लेकिन अब सियासी परिदृश्य पहले के मुकाबले एकदम जुदा है। अवाम ने पुरानी पटकथाओं को नकार दिया है। कांग्रेस के लिए वहां स्थिति अब ऐसी है कि सूफड़ा ही साफ हो गया है। हाल ही में मिजोरम विधानसभा चुनाव का रिजल्ट आया, उसमें मात्र सिंगल सीट कांग्रेस को ...
जाति की आग को फिर मिलने लगी हवा

जाति की आग को फिर मिलने लगी हवा

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- डॉ. प्रभात ओझा मसला जाति का हो तो राजनीति होनी ही है। यह जाति के आधार पर जनगणना कराने की बात है। यानी हर जगह, कहां कौन सी जाति के कितने लोग हैं। अगले चरण में इसी औसत में सम्बंधित समुदाय को लाभ देने के कदम उठाए जाएं, यह स्वाभाविक है। जानकार लोगों को मंडल कमीशन (दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग) की रिपोर्ट और उसके बहुत बाद केंद्र में वी. पी. सिंह सरकार के समय उस रिपोर्ट को लागू करने के समय की घटनाएं याद होंगी। यहां गौर करने वाली बात यह है कि तब भी ऐसा किसी जातिगत जनगणना के आधार पर नहीं किया गया था। पहले एक आयोग बना। उसी की रिपोर्ट के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था की गयी। जातिगत जनगणना तो 92 साल बाद हुई है। वह भी सिर्फ एक प्रांत में। वर्ष 1931 के 92 साल बाद बिहार में जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी कर दी गई है। इसी के साथ इसके औचित्य प...
महाराष्ट्र की राजनीति में ‘चाणक्य’ की पराजय

महाराष्ट्र की राजनीति में ‘चाणक्य’ की पराजय

अवर्गीकृत
- मुकुंद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता अजित पवार ने अपने समर्थक विधायकों के साथ महाराष्ट्र की शिंदे सरकार में शामिल होकर सबको चौंका दिया। अजित ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। छगन भुजबल समेत नौ विधायकों को भी शिंदे सरकार में जगह दी गई है । अजित पवार राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार के भतीजे हैं। भतीजे ने पवार को भरी दोपहर में राजनीति के आसमान में तारे दिखा दिए हैं। दो महीने पहले की बात है। समूची राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सकते में आ गई थी। दरअसल शरद पवार ने घोषणा की थी-एक मई, 1960 से एक मई, 2023 तक सार्वजनिक जीवन में लंबा समय बिताने के बाद अब कहीं रुकने पर विचार करने की आवश्यकता है। इसलिए, मैंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त होने का फैसला किया है। इस वक्त यशवंतराव चव्हाण केंद्र के सभागार में मौजूद हर नेता के पैरों तले जमीन हिल गई थी। शरद पवार ...