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धर्मनिरपेक्ष राज्य की अवधारणा मात्र भ्रम है

धर्मनिरपेक्ष राज्य की अवधारणा मात्र भ्रम है

अवर्गीकृत
- पंकज जगन्नाथ जयस्वाल कोई सोच भी नहीं सकता कि 140 करोड़ की आबादी वाला देश 70 साल से भी ज्यादा समय से 'सेक्युलरिज्म' शब्द के झांसे में फसा हुआ है। विरोधी मान्यताओं वाले राजनीतिक समूह 'धर्मनिरपेक्षता' के बैनर तले एकजुट हो गए हैं। कई राजनीतिक दल चुनाव जीतने और धर्म के खिलाफ शासन करने के लिए तुरुप के पत्ते के रूप में 'धर्मनिरपेक्षता' का उपयोग करते हैं। धर्म का पालन करने वाले राजनीतिक दल की कड़ी आलोचना की जाती है। उसे हराने के लिए तमाम तरह के तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। यह एक ऐसे देश में हो रहा है जहां राजनीतिक जीवन की दस हजार साल की परंपरा सभी के लिए न्याय और समानता को स्थापित करती है, जैसा कि रामराज्य में देखा गया है। धर्म, स्वामी विवेकानंद के अनुसार, भारत का मूल है। लोगों को यह विश्वास करने में गुमराह किया गया कि रिलीजन का अर्थ धर्म है। भारत के इतिहास में ऐसा कोई क्षण नहीं था जहां रि...