सार्वजनिक जीवन में मर्यादा की जरूरत
- गिरीश्वर मिश्र
देश को स्वतंत्रता मिली और उसी के साथ अपने ऊपर अपना राज स्थापित करने का अवसर मिला। स्वराज अपने आप में आकर्षक तो है पर यह नहीं भूलना चाहिए कि उसके साथ जिम्मेदारी भी मिलती है। स्वतंत्रता मिलने के बाद आजादी का स्वाद तो हमने चखा पर उसके साथ की जिम्मेदारी और कर्तव्य की भूमिका निभाने में ढीले पड़ कर कुछ पिछड़ते गए। देश को देने की जगह शीघ्रता और आसानी से क्या पा लें, इस चक्कर में भ्रष्टाचार, भेद-भाव तथा अवसरवादिता आदि का असर बढ़ने लगा। इसीलिए देश के आम चुनाव में कई बार भ्रष्टाचार एक मुख्य मुद्दा बनता रहा। देश की जनता उससे मुक्ति पाने के लिए वोट देती रही है। परन्तु परिस्थितियों में जिस तरह का बदलाव आता गया है उसमें देश की राजनीतिक संस्कृति नैतिक मानकों के साथ समझौते की संस्कृति होती गई। आज की स्थिति में धनबल, बाहुबल, परिवारवाद के साथ राजनीति के किरदारों की अपराध में संलिप्तता किस जोर...