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स्मृति शेष: ‘मां’ ने मुनव्वर को बनाया ‘सबसे दुलारा’ शायर

स्मृति शेष: ‘मां’ ने मुनव्वर को बनाया ‘सबसे दुलारा’ शायर

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- डॉ. रमेश ठाकुर उर्दू साहित्य का विशाल वटवृक्ष रविवार की सर्द शाम को नवाबों के शहर लखनऊ में ढह गया। 26 नवंबर 1952 को उत्तर प्रदेश के जिले रायबरेली में जन्मे मशहूर शायर जनाब मुनव्वर राणा ने एक अस्पताल में अंतिम सांस लेकर नश्वर दुनिया को अलविदा कह दिया। खुदा ने उनके निधन की वजह दिल के दौरे के रूप में मुकर्रर की, जबकि थे कैंसर से पीड़ित। उनके न रहने की खबर सोमवार तड़के पूरे संसार में आग की तरह फैली, जिसने भी सुनी वह स्तब्ध रह गया। बड़ी-बड़ी हस्तियों ने दुख जताया। मुनव्वर के निधन से न सिर्फ उर्दू-साहित्य को नुकसान होगा, बल्कि अवधी-हिंदी भाषा को भी गहरा धक्का लगेगा। विश्व पटल पर उन्हें अवधी का खूब प्रचार-प्रसार किया। उर्दू शायरी में नया प्रयोग करके उन्होंने देसी भाषाओं को अपनी जुबान बनाई थी। राणा की कही प्रत्येक शायरी-कविता में ऐसी तल्खियां होती थीं, जो सियासतदानां को हमेशा नागवार गुजरी। उनक...
जनगण के कवि हैं रबींद्र नाथ टैगोर

जनगण के कवि हैं रबींद्र नाथ टैगोर

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- रमेश सर्राफ धमोरा महाकवि रबींद्र नाथ टैगोर की जयंती 07 मई को मनाई जाएगी। उन्हें जनगण का कवि कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। गुरुदेव टैगोर दुनिया के एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनके लिखे दो गीत दो देशों के राष्ट्रगान हैं। उनका लिखा गीत जन गण मन भारत का राष्ट्रीय गान है। उनका लिखा दूसरा गीत आमार सोनार बांग्ला बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान है। दुनिया में गुरुदेव जैसे विरले ही लोग होते हैं जिन्हें इतना बड़ा सम्मान मिला है। जिनके लिखे गीत दो देशों के राष्ट्रगान बनकर अमर हो गए। भारत और बांग्लादेश में जब भी कोई राष्ट्रीय कार्यक्रम होता है तो गुरुदेव टैगोर के लिखित गीत राष्ट्रीय धुन के रूप में गाए जाते हैं। गुरुदेव के लिखे इन गीतों के माध्यम से उन्हें हर समारोह में याद किया जाता है। रबींद्रनाथ टैगोर ने अपनी रचनाओं से न केवल हिंदी साहित्य के विकास में योगदान दिया। बल्कि अनेकों कवियों और साहित्यकार को भ...