भगवान परशुरामः अधर्म के विनाशी
- ऋतुपर्ण दवे
धर्म को सरल और बेहद कम शब्दों में इस तरह भी समझा जा सकता है कि समाज द्वारा स्वीकृत वो मान्यताएं हैं, जिस पर चल कर मनुष्य कितना भी शक्तिशाली हो जाए किसी दूसरे का अहित नहीं कर सकता है तथा संतुलित व मर्यादित रहता है। वह धर्म नीति ही है जो मानवता का बोध कराने, अत्याचार, अनाचार, साधु-संतों के उत्थान के लिए भगवान का अनेकों रूप बनवाती है ताकि दुष्टों का संहार, विश्व कल्याण के साथ धर्म जो मनुष्य को उसकी सीमाओं में रखता है, उसकी रक्षा की जा सके।
भगवान परशुराम ऐसे ही धर्मपरायण थे जो क्रोध के वशीभूत होकर अनाचारियों के लिए किसी काल से कम न थे। परशुराम ही इतिहास के पहले ऐसा महापुरुष हैं जिन्होंने किसी राजा को दंड देने के लिए दूसरे राजाओं को भी सबक सिखा नई राज व्यवस्था बनाई जिससे हाहाकार मच गया। परशुराम की विजय के बाद संचालन सही ढंग से न होने से अपराध और हाहाकार की स्थिति बनी। इससे घबराए...