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सामाजिक क्रांति के अग्रदूत कबीर

सामाजिक क्रांति के अग्रदूत कबीर

अवर्गीकृत
- डॉ. अशोक कुमार भार्गव भारतीय चिंतन परम्परा में सामाजिक क्रांति के अग्रदूत कबीर का चिंतन सामाजिक जड़ता, अराजकता, जन्म के आधार पर भेदभाव, साम्प्रदायिकता, अस्पृश्यता और उंच-नीच जैसी अमानवीय व्यवस्था के खिलाफ शंखनाद है। वे ऐसे आदर्श मानवीय समाज की परिकल्पना करते हैं जहां सामाजिक समरसता पर आधारित मानवीय धर्म की प्रतिष्ठा हो। कहा जाता है कि काशी में लहरतारा तालाब पर नीरू तथा नीमा नामक जुलाहा दंपति को एक नवजात शिशु अनाथ रूप में प्राप्त हुआ। इन दोनों ने बालक का पालन पोषण किया जो संत कबीर के नाम से विख्यात हुए। निम्न और वंचित समझी जाने वाली जुलाहा जाति में पलकर भी तत्कालीन धर्म के दिग्गज पंडितों, मौलवियों को एक ही साथ फटकार सकने में समर्थ कबीर ने 'मसी' और 'कागद' न छूकर तथा कलम हाथ में न पकड़ कर भी केवल अपने प्रामाणिक अनुभव के बल पर जो कुछ कहा उसे सुनकर बड़ी-बड़ी पोथियों के अध्येता भी चकित रह ग...
सामाजिक सद्भाव के अग्रदूत हैं संत रविदास

सामाजिक सद्भाव के अग्रदूत हैं संत रविदास

अवर्गीकृत
- डॉ. रमेश ठाकुर संत-संस्कृति और सनातन के लिए संत रविदास जयंती खास है, क्योंकि इस दिन ही संयुक्त रूप से दो पर्व एक साथ मनाए जा रहे हैं। पहली माघ पूर्णिमा और दूसरी रविदास जयंती। दोनों पर्व एक-दूसरे पूरक माने जाते हैं। समाज सुधारक संत रविदास के दिखाए रास्ते पर चलने का संकल्प लोग लेते हैं। माघ पूर्णिमा को ध्यान, स्नान, दान के लिए खास मानते हैं। आज के ही दिन अखंड भारत के महान संत रविदास का अवतरण भी हुआ था। वह स्वामी रामानंद के शिष्य और कबीरदास के गुरु भाई हैं। संत शिरोमणि रविदास भक्तिकाल के अग्रिम पंक्ति के कवि हैं। उन्हें महानतम मानुष की उपाधि भी प्राप्त थी। उनके परिवर्तनकारी उपदेशों ने समाज का भरपूर मार्गदर्शन किया। संत रविदास ने भगवान की भक्ति में समर्पित होने के साथ अपने सामाजिक और पारिवारिक कर्तव्यों का बखूबी निर्वहन किया। वह बिना भेदभाव किए आपसी सद्भाव पर जोर देते रहे। संत रविदास क...