सामाजिक क्रांति के अग्रदूत कबीर
- डॉ. अशोक कुमार भार्गव
भारतीय चिंतन परम्परा में सामाजिक क्रांति के अग्रदूत कबीर का चिंतन सामाजिक जड़ता, अराजकता, जन्म के आधार पर भेदभाव, साम्प्रदायिकता, अस्पृश्यता और उंच-नीच जैसी अमानवीय व्यवस्था के खिलाफ शंखनाद है। वे ऐसे आदर्श मानवीय समाज की परिकल्पना करते हैं जहां सामाजिक समरसता पर आधारित मानवीय धर्म की प्रतिष्ठा हो। कहा जाता है कि काशी में लहरतारा तालाब पर नीरू तथा नीमा नामक जुलाहा दंपति को एक नवजात शिशु अनाथ रूप में प्राप्त हुआ। इन दोनों ने बालक का पालन पोषण किया जो संत कबीर के नाम से विख्यात हुए। निम्न और वंचित समझी जाने वाली जुलाहा जाति में पलकर भी तत्कालीन धर्म के दिग्गज पंडितों, मौलवियों को एक ही साथ फटकार सकने में समर्थ कबीर ने 'मसी' और 'कागद' न छूकर तथा कलम हाथ में न पकड़ कर भी केवल अपने प्रामाणिक अनुभव के बल पर जो कुछ कहा उसे सुनकर बड़ी-बड़ी पोथियों के अध्येता भी चकित रह ग...