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गीता और सृष्टि का वास्तविक रहस्य

गीता और सृष्टि का वास्तविक रहस्य

अवर्गीकृत
- ह्रदय नारायण दीक्षित गीता दर्शन ग्रंथ है। इसका प्रारम्भ विषाद से होता है और समापन प्रसाद से। विषाद पहले अध्याय में है और प्रसाद अंतिम में। अर्जुन गीता समझने का प्रभाव बताते हैं- 'नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत।' हे कृष्ण आपके प्रसाद से 'त्वत्प्रसादान्मयाच्युत' मोह नष्ट हो गया। प्रश्न उठता है कि यह विषाद क्या है? युद्ध के प्रारम्भ में ही अर्जुन के सामने कठिनाई आती है। उसके अपने घर के लोग ही युद्ध तत्पर सामने खड़े हैं। सगे सम्बंधी हैं। वह तय नहीं कर पाता कि क्या सगे सम्बंधियों को मार कर युद्ध में जीतकर राज्य लिया जाना चाहिए। अर्जुन विषाद ग्रस्त है। वह अपनी मनोदशा बताता है- 'सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति। हमारा पूरा शरीर कंपकपी में है। हमारा मुंह सूख रहा है। हे कृष्ण मैं युद्ध नहीं करूंगा।' यहां अर्जुन निश्चयात्मक हो गया है। पहले बाएं या दाएं जाने की बात थी। वह अब ...