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‘प्रेसीडेंट ऑफ भारत’ से भी ‘इन्हें’ दिक्कत है

‘प्रेसीडेंट ऑफ भारत’ से भी ‘इन्हें’ दिक्कत है

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- विकास सक्सेना आम चुनाव के लिए अभी से पक्ष और विपक्ष की बिसात बिछ चुकी है। लगातार दो लोकसभा चुनाव में करारी हार से बौखलाई कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने मिलकर एक नया गठबंधन तैयार किया है। इसका नाम आईएनडीआईए ' इंडिया' रखा है। मजेदार बात यह है कि सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के मकसद से बना यह गठबंधन तीन बैठकें हो जाने के बाद भी न तो अपना नेता तय कर सका है, न नीति और न कार्यक्रम। केंद्र सरकार के खिलाफ माहौल तैयार करने के लिए मुद्दे तलाश पाने मे नाकाम विपक्षी नेता जो पहले संघ, भाजपा और मोदी के खिलाफ बयानबाजी करते थे अब वे सनातन हिन्दू धर्म, उसके प्रतीकों, संस्कृति और धर्म साहित्य के साथ भारत तक के विरोध में खड़े दिखाई दे रहे हैं। हालांकि सनातन भारतीय संस्कृति से उनकी घृणा कोई नई नहीं है, लेकिन अब तो कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के नेता 'प्रेसीडेंट ऑफ इंड...
पक्ष-विपक्ष को मजबूत करेंगे क्षेत्रीय दल

पक्ष-विपक्ष को मजबूत करेंगे क्षेत्रीय दल

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- डॉ. प्रभात ओझा सैद्धांतिक तौर पर केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार होने के बावजूद अकेले स्पष्ट बहुमत रखने वाली भारतीय जनता पार्टी संतुष्ट और निश्चिंत दिखाई देती रही है। वर्ष 2014 में एनडीए गठबंधन में भाजपा ने अकेले 282 सीटें हासिल की थी, तो 2019 में बढ़कर यह 303 हो गई थी। संसद और सरकार में संख्या बल मायने रखता है और हाल के वर्षों में यह भाजपा के हक में रहा है। इस सैद्धांतिक स्थिति में उस समय बदलाव होते दिखने लगते हैं, जब चुनाव नजदीक हों। लोकसभा के चुनाव अब साल भर से भी कम समय में होने वाले हैं। प्रश्न है कि क्या मुख्य सत्तारूढ़ दल अपना ही पुराना रिकार्ड कायम रख पाएगा। पटना में विपक्षी एकता के लिए हुई बैठक को भारतीय जनता पार्टी नकारने में लगी है। इस बीच पश्चिम बंगाल में कांग्रेस-टीएमसी के कटु होते रिश्ते के अलावा दिल्ली में आए विधेयक के सवाल पर पंजाब, हरियाणा और तेल...
हमारा लोकतंत्र कैसे सुधरे?

हमारा लोकतंत्र कैसे सुधरे?

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- डॉ. वेदप्रताप वैदिक भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। कई देशों में लोकतंत्र खत्म हुआ और तानाशाही आ गई लेकिन भारत का लोकतंत्र जस का तस बना हुआ है लेकिन क्या इस तथ्य से हमें संतुष्ट होकर बैठ जाना चाहिए? नहीं, बिल्कुल नहीं। भारतीय लोकतंत्र ब्रिटिश लोकतंत्र की नकल पर गढ़ा गया है। लंदन का राजा तो नाम मात्र का होता है लेकिन भारत में पार्टी-नेता सर्वेसर्वा बन जाते हैं। सभी पार्टियां प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों की तरह या तो कुछ व्यक्तियों या कुछ परिवारों की निजी संपत्तियां बन गई हैं। उनमें आंतरिक लोकतंत्र शून्य हो गया है। चुनाव से जो सरकारें बनती हैं, वे बहुमत का प्रतिनिधित्व क्या करेंगी? उन्हें कुल मतदाताओं के 20 से 30 प्रतिशत वोट भी नहीं मिलते और वे सरकारें बना लेती हैं। हमारी संसद और विधानसभाओं को पक्ष और विपक्ष के दल एक अखाड़े में तब्दील कर डालते हैं। चुनाव में खर्च होने वाले अरबों-ख...