शिक्षा को ध्यान की दरकार है
- गिरीश्वर मिश्र
देश के सामर्थ्य के लिए शिक्षा का महत्व सभी जानते हैं, मानते हैं और बखानते हैं। समकालीन चर्चाओं में ‘युवा भारत’ की भूमिका सभी लोग दुहराते हैं और “डेमोग्रेफिक डिविडेंड” की बातें करते नहीं थकते। चुनावी घमासान में सबने एक स्वर से देश को आगे ले जाने की क़समें खाईं थीं किंतु शिक्षा की प्रासंगिकता तथा रोज़गार के लिए शिक्षा के महत्व को लेकर लगभग सभी मौन ही धारण किए रहे। वे इसकी स्थिति से से संतुष्ट थे या फिर थक हार कर यह मान चुके हैं कि इस सिलसिले में कुछ भी मुमकिन नहीं है। मंहगाईं, बेरोज़गारी, आरक्षण की सख़्त ज़रूरत, पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते और भारतीय संविधान की सुरक्षा जैसे भारी भरकम मुद्दों के बीच शिक्षा और संस्कृति से जुड़े सवाल लगभग नदारद थे। घोषणा-पत्र, संकल्प-सूची और गारंटियों की काकली के बीच शिक्षा द्वारा मनुष्य के निर्माण और उसके संवर्धन और संरक्षण से जुड़े प्रश्न की...