Friday, September 20"खबर जो असर करे"

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सनातन धर्म है गांधी के हिंद स्वराज का मूल

सनातन धर्म है गांधी के हिंद स्वराज का मूल

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- प्रो.रजनीश कुमार शुक्ल महात्मा गांधी की पहचान विश्व मानवता को प्राण देने के लिए निरंतर संघर्षरत एक ऋषि और राजनेता की है। गांधी के समस्त तप को हिंद स्वराज से अलग होकर के नहीं समझा जा सकता है। वस्तुत गांधी की छोटी किताब धरती पर रामराज्य लाने की अवधारणात्मक प्रस्तुति है। यह पश्चिमी जीवन सृष्टि के प्रतिकार में एक ऐसी सनातन पद्धति का प्रस्ताव है जिसका उद्देश्य लोक कल्याणकारी राज और समाज दोनों ही की निर्मिति है। गांधी की हिंद स्वराज की अवधारणा एक राजनैतिक दर्शन न हो करके संपूर्ण संस्कृति को अभिलक्षित, युग की जरूरत के अनुरूप निर्मित और प्रतिपादित संस्कृति दर्शन है। आधुनिकता के कथित खाते में और व्यक्ति राज्य के बीच अन्य सभी सहज यात्रा संस्थाओं के समापन की घोषणा को उत्तर आधुनिकता कहा जा रहा है। किंतु विश्व के वैचारिक इतिहास में गांधी पहले उत्तर आधुनिक हैं जिन्होंने आधुनिक सभ्यता को युद्ध और यां...
राम भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रतीक

राम भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रतीक

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- हृदयनारायण दीक्षित सत्य, शिव और सुन्दर भारतीय संस्कृति के मूल तत्व हैं। भारतीय राष्ट्र का उद्भव सांस्कृतिक भाव भूमि में ही हुआ था। प्रकृति के प्रति आत्मीय भाव इस संस्कृति की विशेषता है। भारतीय संस्कृति उदात्त है। इस विशाल देश में यहां अनेक भाषाएं और अनेक बोलियां हैं। अनेक भाषाओं और बोलियों के बावजूद यहां सांस्कृतिक एकता है। सभ्यता राष्ट्र की देह है। संस्कृति प्राण है। यह कला, गीत, संगीत, स्थापत्य आदि अनेक रूपों में व्यक्त होती है। सबसे खास बात है भारतीय संस्कृति में विश्व एक परिवार है। 'वसुधैव कुटुंबकम' के सूत्र में समूचा विश्व परिवार जाना गया है। स्वाधीनता संग्राम सांस्कृतिक नवजागरण था। यूरोप के पुनर्जागरण से भिन्न था। ऋग्वेद में सभी दिशाओं से ज्ञान प्राप्ति की स्तुति है। काव्य साहित्य और स्थापत्य संस्कृति की अभिव्यक्ति रहे हैं। सभी भारतीय भाषाओं में राष्ट्र का सांस्कृतिक प्रवाह प्रकट...
भारत के मूल में मानवाधिकार की अवधारणा

भारत के मूल में मानवाधिकार की अवधारणा

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- रमेश सर्राफ धमोरा कुछ अधिकार ऐसे होते हैं जो व्यक्ति को जन्मजात मिलते हैं। उन अधिकारों का व्यक्ति के आयु, प्रजातीय मूल, निवास-स्थान, भाषा, धर्म पर कोई असर नहीं पड़ता। इतिहास गवाह है की भारत ने कभी भी संस्कृति, धर्म या अन्य कारकों के आधार पर दूसरों को अपने अधीन करने की कोशिश नहीं की है। भारत एक ऐसा देश है जिसके मूल में मानवाधिकार की अवधारणा है। भारत के लोग मानवाधिकारों का सम्मान करते हैं और उनकी रक्षा करने का संकल्प भी लेते हैं। भारत विश्व स्तर पर आज भी मानवाधिकार का समर्थन करता रहा है। मानव अधिकार वे मूल अधिकार हैं, जो इस धरती पर प्रत्येक व्यक्ति के पास हैं। मानवाधिकार मौलिक अधिकार और स्वतंत्रता हैं। मानवाधिकारों में जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, गुलामी और यातना से मुक्ति, राय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, काम और शिक्षा का अधिकार और बहुत कुछ शामिल हैं। बिना किसी भेदभाव के हर कोई इन अधिकार...