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‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ बड़ा विचार-बड़ा सुधार

‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ बड़ा विचार-बड़ा सुधार

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- मुकुंद देश में गंभीर तार्किक एवं अन्य चुनौतियों के बावजूद लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का विचार दशकों से चर्चा के केंद्र में है। इसका मकसद भारतीय चुनाव चक्र की अनावश्यक पुनरावृत्ति को रोकना है। हालांकि वर्ष 1967 तक 'एक राष्ट्र एक चुनाव' की अवधारणा के तहत देश में चुनाव हुए हैं, लेकिन कार्यकाल समाप्त होने से पहले राज्यों की विधानसभा और लोकसभा के बार-बार भंग होने के कारण यह सिलसिला थम गया। इसके बावजूद लोकसभा चुनाव के साथ कुछ राज्यों मसलन आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम के विधानसभा चुनाव अभी भी साथ होते हैं। आज 'एक राष्ट्र एक चुनाव' की अवधारणा कुछ कारणों से अपरिहार्य हो गई है। केंद्र सरकार कुछ समय पहले इस संबंध में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति का गठन कर चुकी है। यह समिति इस संबंध में व्यापक मंथन कर रही है। इस अवधा...
एक राष्ट्र-एक चुनाव पर बहस का कोई मतलब नहीं

एक राष्ट्र-एक चुनाव पर बहस का कोई मतलब नहीं

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- राजीव खंडेलवाल एक राष्ट्र-एक चुनाव फिलहाल 'शिगूफा' से कम नहीं। प्रश्न क्या 'एक राष्ट्र एक चुनाव नीति' को लागू करना जरूरी है, उससे पहले यह यक्ष प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या सरकार वास्तव में इस संबंध में गंभीर है? यदि वास्तव में कोई संशोधन बिल लाना ही चाहती होती तो, सरकार उक्त उद्देश्य को इस विशेष सत्र बुलाने की घोषणा में समावेश कर लेती। जैसा कि पूर्व में जब-जब विशेष सत्र बुलाए गए हैं, तो उनके उद्देश्य घोषित किए गए थे। तदनुसार संसद में उन विषयों पर कार्यवाही भी हुई। चूंकि वर्तमान में कोई उद्देश्य (एजेंडा) घोषित किए बिना बुलाए इस विशेष सत्र में सरकार इस संबंध में कोई विधेयक लाएगी, इसकी संभावना इसलिए भी नगण्य सी लगती है, जब सरकार ने इस संबंध में एक कमेटी बना ही दी है, तब उसकी रिपोर्ट/सिफारिश आने तक तो इंतजार करना ही होगा। यह रिपोर्ट 15 दिन के अंदर आ जाए, ऐसा संभव लगता नहीं है। क्योंकि इस ...
‘एक देश-एक चुनाव’ आज की सबसे बड़ी जरूरत

‘एक देश-एक चुनाव’ आज की सबसे बड़ी जरूरत

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- श्याम जाजू वर्तमान दो वर्ष देश के लिए चुनावी साल कहे जा सकते हैं। इस साल 2023 में 10 राज्यों की विधानसभा और 2024 में सात राज्यों की विधानसभा और लोकसभा चुनाव होने हैं। अर्थात दो वर्ष में 18 चुनाव। इनके साथ ही कई विधानसभाओं और लोकसभा की कुछ खाली सीटों के लिए उपचुनाव भी होंगे। मतलब यह की आने वाले दिनों में देश चुनाव में व्यस्त रहेगा। ऐसे समय में जब देश-दुनिया अनेक चुनौतियों से दो-चार हो रही है, पूरी मानवता कोविड और यूक्रेन युद्ध के दुष्प्रभाव से जूझ रही है और जिस समय भारत संघर्ष से लड़कर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में लगा हो, क्या ये उचित लगता है कि सारा देश और प्रशासनिक तंत्र चुनाव व्यवस्था में ही लग जाए? क्या यह उचित नहीं होगा कि सारे चुनाव एक बार में, एक साथ कराए जाएं और बार-बार चुनाव पर होने वाले खर्च और व्यवधान से बचा जा सके? देश की चिंता करने वालों के मन में यह विचार बार-बार आता ...