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ये न ‘लव’ है और न ही ‘जिहाद’

ये न ‘लव’ है और न ही ‘जिहाद’

अवर्गीकृत
- डॉ. वेदप्रताप वैदिक थोक वोट कबाड़ने के लिए हमारे राजनीतिक दल आजकल ऐसे-ऐसे पैंतरे अपना रहे हैं और बेसिर-पैर की दलीलें दे रहे हैं कि कई बार मुझे आश्चर्य होता है कि वे देश को किस दिशा में ले जा रहे हैं। आजकल कुछ प्रदेशों में विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनावों हो रहे हैं। गुजरातियों और मुसलमानों के थोक वोट पटाने के लिए यदि कांग्रेस वीर सावरकर को बदनाम कर रही है तो आफताब-श्रद्धा कांड को एक पार्टी के कुछ नेता ‘लव जिहाद’ का नाम दे रहे हैं ताकि वे अपने धर्म और संप्रदाय के वोट पटा सकें। वास्तव में आफताब ने श्रद्धा की जो बर्बरतापूर्ण हत्या की है, उसकी जितना निंदा की जाए, वह कम है। आफताब को तुरंत इतनी कड़ी सजा इस तरीके से दी जानी चाहिए कि हर भावी हत्यारे के रोंगटे खड़े हो जाएं लेकिन उसे ‘लव जिहाद’ कहने की तो कोई तुक नहीं है। आफताब और श्रद्धा के बीच न ‘लव’ था और न ही 'जिहाद'। दोनों के बीच प्रेम ह...