विभाजन विभीषिका : सपने सच होने बाकी हैं, रावी की शपथ अधूरी है
- डॉ. मयंक चतुर्वेदी
भारत का विभाजन हुआ यह सभी ने देखा। कहा जाता है कि नियति ही उस दिन की ऐसी थी, पहले से सब कुछ तय था । पटकथा लिखी जा चुकी थी, परिवर्तन की संभावना शून्य थी। लेकिन इतिहास तो ऐसे कई उदाहरणों से भरा पड़ा है, जब पूर्ण वेग विपरीत दिशा में था उसके बाद भी परिवर्तन संभव हो सके, जो कहीं वर्तमान में दिखाई नहीं देते थे। भारत विभाजन का एक सच यह भी है, यदि उस समय देश का अहिंसक आन्दोलन जिसमें कि सबसे अधिक जनसंख्या में लोगों का विश्वास रहा, उसका नेतृत्व कर रहे महात्मा गांधी अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की तरह निर्णय लेने की दृढ़ प्रतिज्ञा कर लेते तो देश का परिदृश्य ही कुछ ओर होता, क्योंकि यह स्वभाविक है कि जैसा नेतृत्व होता है, संगठन, सत्ता, शासन की धारा उसी अनुसार बही चली जाती है।
दुनिया जानती है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों का भारत छोड़कर जाना अपरिहार्य ...