आइए लिखें नई इबारत
- गिरीश्वर मिश्र
नए के प्रति आकर्षण मनुष्य की सहज स्वाभाविक प्रवृत्ति है। ‘नया’ अर्थात जो पहले से भिन्न है। मौलिक है। अपनी अलग पहचान बनाता है। यह भिन्नता सृजनात्मकता का प्राण कही जाती है। उसी कृति या आविष्कार को प्रतिष्ठा मिलती है, पुरस्कार मिलता है जिसमें कुछ नयापन होता है, जो पुरानी घिसी-पिटी लीक पर न होकर उससे हट कर हो । हालांकि, एक सच यह भी है कि अक्सर नए को अपनी प्रतिष्ठा अर्जित करना आसान नहीं होता, उसे पुराने से टक्कर लेनी पड़ती है और प्रतिरोध की पीड़ा और उपेक्षा भी सहनी पड़ता है । कभी ऐसे ही क्षण में संस्कृत के शीर्षस्थ कवि कालिदास को यह कहना पड़ा कि ‘ पुराना सब अच्छा है और नया ख़राब है’ ऐसा तो मूढ़ और अविवेकी लोग ही सोचते हैं जो दूसरों की कही-कहाई बात सुन कर फैसला लेते हैं परंतु साधु या विवेकसम्पन्न लोग सोच-विचार कर और परख कर ही अच्छाई या बुराई का निश्चय करते हैं । नए के प्रति आकर...