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नेताजी जयंती: दूसरों की खुशी के लिए खुद सहे कष्ट

नेताजी जयंती: दूसरों की खुशी के लिए खुद सहे कष्ट

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- योगेश कुमार गोयल आजादी के परवाने महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस दूसरों के दुख-दर्द को अपना दुख-दर्द समझने वाले संवेदनशील शख्स तो थे ही, साथ ही एक वीर सैनिक, एक महान सेनापति और राजनीति के अद्भुत खिलाड़ी भी थे। उनसे जीवन से जुड़े अनेक ऐसे प्रसंग हैं, जिनसे उनकी उदारता, मित्रता, संवेदनशीलता, दूरदर्शिता स्पष्ट परिलक्षित होती है। भारत की आजादी के संघर्ष में उनके नेतृत्व में आजाद हिन्द फौज के योगदान को सदैव सराहा जाता है लेकिन एक बार उनकी इसी फौज में एक साम्प्रदायिक विवाद ने जन्म ले लिया था। दरअसल फौज के मुस्लिम भाईयों का विरोध था कि मैस में सूअर का मांस नहीं बनेगा जबकि ‘आजाद हिन्द फौज’ के हिन्दू साथी गाय का मांस इस्तेमाल करने का प्रखर विरोध कर रहे थे। विकट समस्या यह थी कि दोनों में से कोई भी पक्ष एक-दूसरे की बात मानने या समझने को तैयार नहीं था। विवाद बढ़ने पर जब यह सारा वाकया नेताज...
नेताजी जयंती: छूटे अंग्रेजों के छक्के, आजाद हो गया भारत

नेताजी जयंती: छूटे अंग्रेजों के छक्के, आजाद हो गया भारत

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- सुरेन्द्र किशोरी 23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कटक में वकील जानकीनाथ बोस की पत्नी प्रभावती की गोद में नौवीं संतान के रूप में जब बालक की किलकारी गूंजी तो किसी को कहां पता था कि वह एक दिन न केवल मां भारती को स्वतंत्र कराने वाले वीर सपूतों के अग्रणी पंक्ति में शामिल होगा और नेताजी के रूप में मशहूर हो जाएगा। लोगों के खून में जोश भरने के लिए उनका नारा- ' तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा' भारत का राष्ट्रीय नारा बन जाएगा। बचपन में ही बोस ने यह जान लिया था कि जब तक सभी भारतवासी एकजुट होकर अंग्रेजों का विरोध नहीं करेंगे, तब तक हमारे देश को उनकी गुलामी से मुक्ति नहीं मिल सकेगी। उनके मन में अंग्रेजों के प्रति तीव्र घृणा और देशवासियों के प्रति बड़ा प्रेम था। किशोरावस्था में ही सुभाषचंद्र बोस की मनोवृत्ति का झुकाव सांसारिक धन, वैभव, पदवी के बजाय जीवन की वास्तविकता को जानने और अपनी शक्ति तथा सामर...