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“वन नेशन वन इलेक्शन” आज के भारत की आवश्यकता

“वन नेशन वन इलेक्शन” आज के भारत की आवश्यकता

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- प्रहलाद सबनानी स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में लोकसभा एवं विभिन्न प्रदेशों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही होते रहे हैं। परंतु केंद्र सरकार द्वारा कुछ विधानसभाओं को 1950 एवं 1960 के दशक में इनकी अवधि समाप्त होने के पूर्व ही भंग करने के चलते कुछ विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा से अलग कराने की आवश्यकता पड़ी थी, उसके बाद से लोकसभा, विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं एवं स्थानीय स्तर पर नगर निगमों, निकायों एवं पंचायतों के चुनाव अलग-अलग समय पर कराए जाने लगे। आज स्थिति यह हो गई है कि लगभग प्रत्येक सप्ताह अथवा प्रत्येक माह भारत के किसी न किसी भाग में चुनाव हो रहे होते हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान प्रत्येक वर्ष केवल 65 दिन ऐसे रहे हैं जब भारत के किसी स्थान पर चुनाव नहीं हुए हैं। किसी भी देश में चुनाव कराए जाने पर न केवल धन खर्च होता है बल्कि जनबल का उपयोग भी करना पड़ता है...
देश की जरूरत है समान नागरिक संहिता और चुनाव-सुधार

देश की जरूरत है समान नागरिक संहिता और चुनाव-सुधार

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- गिरीश्वर मिश्र ‘गण’ समूह की इकाई का बोधक प्राचीन शब्द है। वह एक ऐसी इकाई जो सुपरिभाषित हो और जिसका परिगणन संभव हो। गण ‘संघ’ का पर्याय है और गणों का समूह भी। देवताओं में विघ्न विनाशक गणेश जी ‘गणपति’ के रूप में विख्यात हैं। अभी-अभी पूरे देश में उनकी वंदना का उत्सव मनाया गया। स्वयं गणपति तो सेकुलर हैं पर सेकुलर राजनीति उनको ग़ैर-सेकुलर मानती है। भारत की संसद ने एक संविधान को अंगीकार किया जो सामाजिक विषमताओं और असमानताओं को दूर करने और नागरिक जीवन के विधिसम्मत संचालन की व्यवस्था करता है। उल्लेखनीय है कि देश की सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता और बहुलता उस समय भी मौजूद थी जब संविधान बन रहा था। परंतु उस दौरान सब के बीच देश की एकता मुखर थी और उसके प्रति एकल प्रतिबद्धता थी देश को स्वतंत्रता मिली और ‘स्वराज’ यानी अपने ऊपर अपना राज स्थापित करने का अवसर मिला। स्वराज का भाव जिम्मेदारी भी सौंपता है। हमने...
कैसे पैदा होंगे बिना राजनीतिक विरासत वाले युवा नेता

कैसे पैदा होंगे बिना राजनीतिक विरासत वाले युवा नेता

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-प्रियंका सौरभ आज देश को ऐसे युवा नेताओं को सशक्त बनाने की आवश्यकता है, जो राजनीतिक परिवारों से नहीं आते। भारत को वंशवादी राजनीति से मुक्त होने की जरूरत है। राजनीति और शासन में युवाओं की भूमिका है, विशेष रूप से भारतीय राजनीतिक जीवन में भाई-भतीजावाद और वंशवादी उत्तराधिकार द्वारा उत्पन्न चुनौतियों के संबंध में। ऐतिहासिक रूप से, युवा नेतृत्व उद्योग और प्रौद्योगिकी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण रहा है। युवा नेता अक्सर नवाचार के मामले में सबसे आगे रहे हैं, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी में, जहां उनके योगदान ने उद्योगों में क्रांति ला दी है। भारत में, जहां आधी से अधिक आबादी 25 वर्ष से कम है, 18वीं लोकसभा में निर्वाचित प्रतिनिधियों की औसत आयु 56 वर्ष है, जो युवा जनसांख्यिकी और सरकार में उनका प्रतिनिधित्व करने वालों के बीच एक महत्वपूर्ण वियोग को उजागर करती है। भारत को अपने मूल लोकतांत्रिक सिद...
भारतीय ज्ञान परम्परा पर आधारित शिक्षा की जरूरत

भारतीय ज्ञान परम्परा पर आधारित शिक्षा की जरूरत

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- डॉ. सौरभ मालवीय शिक्षा को लेकर समय-समय पर अनेक प्रश्न उठते रहते हैं, जैसे कि शिक्षा पद्धति कैसी होनी चाहिए? पाठ्यक्रम कैसा होना चाहिए? विद्यार्थियों को पढ़ाने का तरीका कैसा होना चाहिए? वास्तव में स्वतंत्रता से पूर्व देश में अंग्रेजी शासन था। अंग्रेजों ने अपनी सुविधा एवं आवश्यकता के अनुसार शिक्षा पद्धति लागू की। उनका उद्देश्य भारतीयों को शिक्षित करना नहीं था, अपितु उनका उद्देश्य केवल अपने लिए क्लर्क तैयार करना था। देश की स्वतंत्रता के पश्चात स्वदेशी सरकार ने इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया। स्वतंत्रता के पश्चात देश में बहुत से कार्य करने थे। संभव है कि इस कारण इस ओर ध्यान नहीं गया हो अथवा उस समय के लोगों को अंग्रेजी शिक्षा पद्धति उचित लगी हो। कारण जो भी रहा हो, देश में अंग्रेजी शिक्षा पद्धति से ही पढ़ाई होती रही। कुछ दशकों पूर्व देश में नई शिक्षा पद्धति की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी तथा इस पर ...
तार्किक पाठ्यक्रम समय की मांग

तार्किक पाठ्यक्रम समय की मांग

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- प्रियंका सौरभ एनसीईआरटी कक्षा छह से दस तक की इतिहास, समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों में बदलाव कर रहा है। एक मजबूत शिक्षा प्रणाली में शिक्षण सामग्री का संशोधन पाठ्यक्रम के लिए समान होना चाहिए। लेकिन भारत में स्कूली पाठ्यक्रम हमेशा नवीनतम शोध के साथ तालमेल बनाए रखते हैं। पक्षपातपूर्ण या संकीर्ण दृष्टिकोण से बचने के लिए स्वतंत्रता के बाद से, हमारी स्कूली पाठ्यपुस्तकें अकसर कला, साहित्य, दर्शन, शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और आर्थिक विकास में भारत की प्रगति को मान्यता देने से बचती हैं। पहले की पाठ्यपुस्तकें भारतीय इतिहास के बारे में एक ऐसा दृष्टिकोण बनाती हैं जो विश्व की सभ्यता पर भारत के गहन प्रभाव को दबा देती है। इसके परिणामस्वरूप हमारी राष्ट्रीय पहचान और ऐतिहासिक कथा के बारे में एक विषम धारणा बनती है। स्कूली विद्यार्थियों को कम उम्र में ऐतिहासिक घटनाओं और संघर्षों की ...
रचनात्मक राजनीति समय की जरूरत

रचनात्मक राजनीति समय की जरूरत

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- सुरेश हिन्दुस्थानी भारत एक लोकतांत्रिक देश है। इसका तात्पर्य यही है कि देश की जनता ही भारत की असली सरकार है। लोकसभा चुनाव के बाद अब देश में सरकार और विपक्ष की भूमिका भी तय हो गई है। जनता ने जहां नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए राजग को बहुमत दिया है, वहीं कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष को एक बार फिर से सत्ता से दूर कर दिया है। अब चुनाव हो चुके हैं, इसलिए लोकतांत्रिक देश होने के नाते आवश्यक है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष को जनता की भावनाओं को ध्यान में रखकर ही काम करना चाहिए। क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान जिस प्रकार के बयान दिए गए, उससे यही लगता है कि इसकी प्रतिध्वनि आगे भी सुनाई देगी। आज के राजनीतिक हालातों का अध्ययन किया जाए तो यह कहना सर्वथा उचित ही होगा कि दलीय आधार की राजनीति करना केवल चुनाव तक ही सीमित रहना चाहिए। उसका असर अगर संसद की कार्यवाही में दिखाई देगा तो यह देश के स...
मक्का और गन्ने से इथेनॉल उत्पादन में तेजी लाने की जरूरत : शाह

मक्का और गन्ने से इथेनॉल उत्पादन में तेजी लाने की जरूरत : शाह

देश, बिज़नेस
नई दिल्ली (New Delhi)। केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने कहा है कि देश में मक्का और गन्ने (maize and sugarcane) से इथेनॉल उत्पादन (Increase ethanol production) में तेजी लाने की जरूरत है। इस दिशा में कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज को अहम भूमिका निभानी चाहिए। शाह ने शुक्रवार को दिल्ली में नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज के नवनिर्वाचित बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स से मुलाकात के दौरान कहा कि भारत के चीनी क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाने की जरूरत है। मक्का और गन्ने से इथेनॉल उत्पादन के लिए मल्टीफीड डिस्टलरी लगाने की दिशा में तेजी से काम करने की जरूरत है। उन्होंने फेडरेशन को एक कॉरपोरेट संस्था की तरह चलाने का निर्देश दिया। मुलाकात के बाद शाह ने एक्स पर लिखा कि आज नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज़ के नवनिर्वाचित बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स से मिलकर उन्हें बधाई दी। उन्ह...
समान नागरिक संहिता पर केंद्रीय कानून की जरूरत

समान नागरिक संहिता पर केंद्रीय कानून की जरूरत

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- डॉ. अनिल कुमार निगम समान नागरिक संहिता बनाने के मामले में उत्तराखंड सरकार ने जिस तरीके से पहल की है, उससे हम सब के जेहन में एक अहम सवाल यह है कि क्या केंद्र की एनडीए सरकार इस पर कानून बनाकर संपूर्ण देश में लागू कर सकती है? अब देश के अन्य राज्यों ने भी इस पर कानून बनाने की योजना बनानी शुरू कर दी है। अगर हर राज्य समान नागरिक संहिता पर अलग- अलग कानून बनाते हैं तो उससे जो संसद द्वारा कानून बनाए गए हैं, मसलन तलाक, उत्तराधिकार अधिनियम, विवाह जैसे अधिनियमों का क्या होगा? ऐसी स्थिति में केंद्र और राज्य सरकारों के कानूनों को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हो जाएगी। इसलिए आवश्यक है कि केंद्र सरकार समान नागरिक संहिता के मामले पर अपनी चुप्पी तोड़े। उत्तराखंड में भाजपा की सरकार है। उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता को लागू करने का मुद्दा भाजपा के घोषणा पत्र का हिस्सा रहा है। इसलिए सवाल उठना लाजमी है क...
खेत-खलिहान के प्रयोगधर्मियों के नवाचारों को संरक्षण आज की जरूरत

खेत-खलिहान के प्रयोगधर्मियों के नवाचारों को संरक्षण आज की जरूरत

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बदलते सिनेरियो में सरकार को अब विश्वविद्यालयों की बड़ी-बड़ी और संसाधनयुक्त प्रयोगशालाओं से अलग खेत को ही प्रयोगशाला बनाकर अपनी मेहनत, नवाचारी, परंपरागत और आधुनिकतम खेती के बीच सामंजस्य बनाते हुए नित नए प्रयोग करने वाले प्रयोगधर्मी किसानों की मेहनत को मान्यता, संरक्षण और पहचान देने की पहल भी करनी होगी। इसमें कोई दोराय नहीं की देश के कृषि विश्वविद्यालयों में शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में विश्वस्तरीय कार्य हो रहा है और आज खेती किसानी के क्षेत्र में देश नित-नए आयाम स्थापित कर रहा है। कृषि के क्षेत्र में भारत आज अग्रणी देश बन गया है। हालात यह हो गए है कि आज गेहूं और धान के निर्यात पर रोक के बावजूद देश के किसानों की ही मेहनत का फल है कि बागवानी व अन्य कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाकर देश निर्यात के नए कीर्तिमान स्थापित करने की और अग्रसर है। पर यहां हमें यह नहीं भूलना होगा कि रासायनिक उर्वरकों और...