Friday, September 20"खबर जो असर करे"

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विश्व को वृक्ष-वनस्पति प्रेमी विकास तंत्र की आवश्यकता

विश्व को वृक्ष-वनस्पति प्रेमी विकास तंत्र की आवश्यकता

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- हृदयनारायण दीक्षित वातावरण में तनाव है। पृथ्वी का ताप बढ़ रहा है। सभी जीव व्यथित हैं। प्रकृति में अनेक जीव हैं। सब शुद्ध प्राण वायु पर निर्भर हैं। प्राण वायु का मुख्य स्रोत वनस्पतियां हैं। भारतीय राष्ट्रजीवन में वनस्पतियां, औषधियां देवता की श्रेणी में हैं। पीपल, बरगद, नीम, बेल आदि वृक्षों की उपासना होती है। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि, ''पीपल का वृक्ष मैं ही हूं।'' भारत की तरह दुनिया के किसी भी अन्य देश, संस्कृति व सभ्यता में वनस्पतियों और वृक्षों को नमस्कार नहीं किया गया। वनस्पतियों के कारण पर्यावरण शुद्ध रहता है। दुर्भाग्य से सारी दुनिया में वन क्षेत्र घटा है। भूमण्डलीय ताप बढ़ा है। वर्षा चक्र गड़बड़ाया है। यहां भारत में वैदिक काल से लेकर पुराण और महाभारत में वनस्पतियों और वृक्षों को विशेष आदर के साथ याद किया गया है। उन्हें देवता जाना गया है। हिन्दू मन वृक्ष वनस्पति की कटान...

मानसिक गुलामी से मुक्ति की आवश्यकता

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- गिरीश्वर मिश्र अमृत-महोत्सव के संदर्भ में प्रधानमंत्री ने गुलामी की मानसिकता से मुक्त होने का आह्वान किया है । यह इसका स्मरण दिलाता है कि देश की आजादी अधूरी है। हम आज भी मानसिक रूप से पूरी तरह से स्वाधीन नहीं हो सके हैं। पराधीनता के बंधन में दास स्वामी की दृष्टि से स्वयं को और अपनी दुनिया को देखने का भी अभ्यस्त हो जाता है। अभ्यास में आने के बाद जब हम उसके आदी हो जाते हैं तो हमारी भावना, विचार और कर्म सभी उससे अनुबंधित हो जाते हैं। उसकी तीव्रता का अहसास भी खत्म होने लगता है और तब दासता दासता नहीं रह जाती। स्वतंत्रता की भ्रामक चेतना में गुलाम अपने आका की खुशी में ही अपनी भी खुशी देखता है। गुलामी की सोच या मनोवृत्ति (माइंड सेट) संकुचित या प्रतिबंधित दृष्टि के साथ बंधी बंधाई लीक पर चलने को बाध्य करती है। अनुगमन और अनुकरण करते रहना अपनी नियति मान कर इस तरह की सोच सर्जनात्मकता से भी विमुख करत...

जल संरक्षण : सुखमय भविष्य की आवश्यकता है जल की बचत

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- सुरेश हिन्दुस्थानी विश्व में जल भगवान का दिया हुआ एक ऐसा उपहार है, जिसके बिना जीवन की कल्पना करना संभव नहीं है। वर्तमान में जल का जिस प्रकार से उपयोग किया जा रहा है, उससे ऐसा लगने लगा है कि भविष्य में जल का बहुत बड़ा संकट उत्पन्न होने वाला है। जल संरक्षण के लिए चलाए जा रहे सरकारी प्रयास नाकाफी सिद्ध हो रहे हैं। गांव और शहरों की कई बस्तियों में पेयजल समस्या के हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। सबसे गंभीर बात तो यह है कि इन क्षेत्रों में सरकार द्वारा वित्त पोषित संस्थाएं भी ध्यान नहीं दे रही हैं। क्योंकि अभी तक देखने में आया है कि जितनी आर्थिक सहायता जल के संरक्षण के लिए सरकार द्वारा प्रदान की गई है, उसके अनुसार काम नहीं दिखाई दिया। इसलिए सवाल यह भी आता है कि जल संचयन के लिए काम करने वाली संस्थाएं की कार्यप्रणाली को किस हद तक सही माना जा सकता है। वास्तव में होना यह चाहिए कि जिस संस्था के माध्...