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तार्किक पाठ्यक्रम समय की मांग

तार्किक पाठ्यक्रम समय की मांग

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- प्रियंका सौरभ एनसीईआरटी कक्षा छह से दस तक की इतिहास, समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों में बदलाव कर रहा है। एक मजबूत शिक्षा प्रणाली में शिक्षण सामग्री का संशोधन पाठ्यक्रम के लिए समान होना चाहिए। लेकिन भारत में स्कूली पाठ्यक्रम हमेशा नवीनतम शोध के साथ तालमेल बनाए रखते हैं। पक्षपातपूर्ण या संकीर्ण दृष्टिकोण से बचने के लिए स्वतंत्रता के बाद से, हमारी स्कूली पाठ्यपुस्तकें अकसर कला, साहित्य, दर्शन, शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और आर्थिक विकास में भारत की प्रगति को मान्यता देने से बचती हैं। पहले की पाठ्यपुस्तकें भारतीय इतिहास के बारे में एक ऐसा दृष्टिकोण बनाती हैं जो विश्व की सभ्यता पर भारत के गहन प्रभाव को दबा देती है। इसके परिणामस्वरूप हमारी राष्ट्रीय पहचान और ऐतिहासिक कथा के बारे में एक विषम धारणा बनती है। स्कूली विद्यार्थियों को कम उम्र में ऐतिहासिक घटनाओं और संघर्षों की ...
एनसीईआरटी ने किताबों ने प्रसन्न कर दिया

एनसीईआरटी ने किताबों ने प्रसन्न कर दिया

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- हृदयनारायण दीक्षित राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने पहली व दूसरी कक्षा की पुस्तकें जारी की हैं। ये राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसरण में तैयार की गई हैं। प्रसन्नता की बात है कि इनमें तैत्तरीय उपनिषद में वर्णित पंचकोष का उल्लेख किया गया है। तैत्तरीय उपनिषद में आनंद का समुचित विवेचन है। कहते हैं, 'चेतन से आकाश पैदा हुआ। आकाश से वायु वायु से अग्नि और अग्नि से जल का उद्भव हुआ। जल से पृथ्वी। पृथ्वी से औषधियां वनस्पतियां प्रकट हुईं। वनस्पतियों औषधियों से अन्न और अन्न से पुरुष पैदा हुआ। यह पुरुष अन्नमय है। (तैत्तिरीय उपनिषद 2.1) यहां सृष्टि के विकासवादी सिद्धांत के संकेत है। आगे कहते हैं, 'अन्न से प्रजा उत्पन्न हुई। अन्न से जीवित रहती है और अन्न में लीन होती है। अन्न सभी प्राणियों का ज्येष्ठ है। अन्नमय शरीर के भीतर प्राणमय शरीर है।' प्राण के बारे में कहते हैं, '...
जैव विकास में दशावतार की अवधारणा और डार्विन

जैव विकास में दशावतार की अवधारणा और डार्विन

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- प्रमोद भार्गव एनसीईआरटी अर्थात राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम से नवीं एवं दसवीं कक्षाओं की विज्ञान पुस्तकों से चार्ल्स डार्विन के जैव विकास के सिद्धांत को हटा दिए जाने पर विवाद गहरा रहा है। देश के लगभग 1800 वैज्ञानिक और शिक्षकों ने एनसीईआरटी की इस पहल की आलोचना करते हुए इसे शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा उपहास बताया है। दरअसल भारत के बुद्धिजीवियों का एक वर्ग जब भी किसी पाश्चात्य सिद्धांत या इतिहास के भ्रामक प्रसंगों को हटाए जाने की बात छिड़ती है तो उसके पक्ष में उठ खड़े होते हैं। जबकि चार्ल्स डार्विन ने जब जीवों के विकासवाद का अध्ययन करने के बाद 1859 में ‘ऑरिजिन ऑफ स्पीशीज‘ अर्थात ‘जीवोत्पत्ति का सिद्धांत‘ दिया तब इसका ईसाई धर्मावलंबियों और अनेक ईसाई वैज्ञानिकों ने जबरदस्त विरोध किया था। क्योंकि इसमें मनुष्य का अवतरण बंदर से बताया गया था। अलबत्ता जब ...
इतिहासबोध राष्ट्रबोध का आधार

इतिहासबोध राष्ट्रबोध का आधार

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- हृदयनारायण दीक्षित राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) द्वारा दसवीं, ग्यारहवीं व बारहवीं की पुस्तकों में कतिपय संशोधन किए गए हैं। इन पुस्तकों में बच्चों के लिए ज्ञानवर्धक पाठ्यक्रम बनाए जाते हैं। विषय विशेषज्ञों की समिति विचार करती है। अन्य विषय की पुस्तकों में भी संशोधन हुए हैं। लेकिन इतिहास की पुस्तकों में हुए कतिपय संशोधनों को लेकर बहस चल रही है। अध्ययन की दृष्टि से इतिहास, संस्कृति और दर्शन महत्वपूर्ण विषय माने जाते हैं। इतिहासबोध राष्ट्रबोध का आधार है। भारत में इतिहास संकलन की विशेष परंपरा रही है। यूरोपीय तर्ज के इतिहास में राजाओं और सामंतों के संघर्षों का वर्णन ज्यादा होता है। भारतीय इतिहास में संस्कृति का विवरण महत्वपूर्ण होता है। इतिहास सर्वोच्च मार्गदर्शी होता है। सृष्टि के उदय से लेकर अब तक का विवरण इतिहास है। इतिहास का अर्थ है-ऐसा ही हुआ था। भारतीय जीवन...
इस विरोध का अर्द्धसत्य

इस विरोध का अर्द्धसत्य

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- डॉ. रविन्द्र प्रताप सिंह जब से एनसीईआरटी ने इतिहास विषय में एक्सपर्ट कमेटी के सलाह पर बदलाव करने का फैसला किया है तब से वामपंथ और कांग्रेस विचारधारा से प्रभावित अकादमिक गुट सक्रिय हो गया है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है।ऐसा ही माहौल तब भी तैयार किया गया था जब डॉ. मुरली मनोहर जोशी मानव संसाधन विकासमंत्री थे। इस समय इतिहास विषय में भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन को आतंकवादी आंदोलन के नाम से पढ़ाया जा रहा था। डॉ. जोशी के कार्यकाल में एनसीईआरटी ने इतिहास से आतंकवादी शब्द को हटाने का निर्णय लिया था। इसके साथ ही बहुत से भ्रामक तथ्य जानबूझकर गलत तरीके से इतिहास विषय के रूप में बच्चों को पढ़ाए जा रहे थे। इसका एकमात्र उद्देश्य यह था कि नई पीढ़ी हमेशा कांग्रेस और गांधी को देश की आजादी के आंदोलन का अगुवा और मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को साम्प्रदायिक शक्तियों के रूप में समझे। ए...