Friday, November 22"खबर जो असर करे"

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चंबा प्रकृति में समृद्ध, विकास में पिछड़ा

चंबा प्रकृति में समृद्ध, विकास में पिछड़ा

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- कुलभूषण उपमन्यु हिमाचल प्रदेश का जिला चंबा आजादी से पहले उत्तर पश्चिमी हिमालय का एक मुख्य रजवाड़ा हुआ करता था. जो आजादी के बाद हिमाचल प्रदेश में 1948 में शामिल हुआ और जिला चंबा कहलाया। हालांकि लाहौल का भी कुछ क्षेत्र चंबा रजवाड़े का भाग हुआ करता था जिसे चंबा-लाहौल कहा जाता था। पंजाब-हिमाचल के पुनर्गठन के बाद कुल्लू लाहौल का मुख्य भाग भी जब हिमाचल में शामिल हो गया तब चंबा लाहौल वाला क्षेत्र जिला लाहौल-स्पिति में डाल दिया गया। चंबा रजवाड़ा शासन के अंतर्गत अन्य पहाड़ी रजवाड़ों से विकसित और प्रगतिशील माना जाता था। जहां 1870 से पहले राजा श्री सिंह के समय आधुनिक चिकित्सालय का निर्माण हो चुका था। राजा शाम सिंह के समय जिसे 40 बिस्तर का अस्पताल बनाया गया। राज्य के दूरदराज हिस्सों को सड़कों से जोड़ा गया। विद्यालय खोले गए। प्रतिभाशाली छात्रों को राज्य से बाहर पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति देने की व्यवस्था हु...
भारतीय संस्कृति और मर्यादा का अंतस

भारतीय संस्कृति और मर्यादा का अंतस

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- हृदयनारायण दीक्षित प्रत्यक्ष पर्यावरण प्रकृति की संरचना है। भारत के प्राचीनकाल में भी प्राकृतिक पर्यावरण की उपस्थिति मनमोहक थी। प्रकृति को देखते, उसके विषय में सोचते और सुनते मनुष्य ने भी सृजन कर्म में जाने अनजाने भागीदारी की। आज का भारत हमारे पूर्वजों, अग्रजों के सचेत कर्मों का परिणाम है। मनुष्य द्वारा किए गए सुंदर सत्कर्म संस्कृति हैं। प्रकृति स्वाभाविक है। लेकिन संस्कृति मनुष्य की रचना है। संक्षेप में विश्व के प्रत्येक जीव की लोकमंगल कामना और उसके लिए किए गए कर्म संस्कृति है। संस्कृति किसी एक व्यक्ति या समूह के कर्मफल का परिणाम नहीं होती। भारतीय संस्कृति के विकास में विज्ञान और दर्शन की महत्ता है। कोई अंधविश्वास नहीं। रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श प्रत्यक्ष इंद्रिय बोध के हिस्से हैं। पूर्वजों की 'मंगल भवन अमंगल हारी'' कर्मठ चेतना से संस्कृति का विकास हुआ। सारांशतः भारत के बुद्धि ...
प्रकृति के सभी घटकों पर आधुनिक सभ्यता का आक्रमण

प्रकृति के सभी घटकों पर आधुनिक सभ्यता का आक्रमण

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- हृदयनारायण दीक्षित प्रकृति का प्रत्येक अंश और अंग परस्परावलम्बन में है। सब एक-दूसरे पर आश्रित हैं। न जल स्वतंत्र है और न ही हवा। वनस्पतियां और औषधियां भी स्वतंत्र नहीं हैं। लाखों जीव हैं, वह भी प्रकृति की शक्तियों पर निर्भर हैं। पिछले कुछ समय से प्रकृति के सभी घटकों पर आधुनिक सभ्यता का आक्रमण है। पृथ्वी का ताप बढ़ा है। संभवतः पहली बार भारत के बड़े क्षेत्र में तापमान लगभग 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा। अनेक जीव, पशु और पक्षी इस ताप को सह नहीं पाए। अनेक मनुष्यों की भी इस ताप के कारण मृत्यु हुई। भूमण्डलीय ताप में लगातार वृद्धि का कारण हमारी जीवनशैली है। इसका केन्द्र आधुनिक औद्योगिक सभ्यता है। इस विषय पर कई अंतरराष्ट्रीय बैठकें भी हो चुकी हैं। लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। यही स्थिति जल प्रदूषण की है। नदियां सूख रही हैं। ऋतु चक्र गड़बड़ाया है। प्राचीन भारत में सभी प्राकृतिक शक्तियों और वनस्पतियों...
चारधाम यात्रा में बढ़ता श्रद्धा का सैलाब… प्रकृति और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम

चारधाम यात्रा में बढ़ता श्रद्धा का सैलाब… प्रकृति और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम

देश
- दर्शनार्थियों का आंकड़ा 12 लाख के करीब, केदारनाथ को लेकर बढ़ता जा रहा क्रेज नई दिल्ली (New Delhi)। हिमालय (Himalaya) की गोद में बसे उत्तराखंड की धरती (Land of Uttarakhand) सदियों से आध्यात्मिक साधकों (Spiritual seekers) और प्रकृति प्रेमियों (Nature lovers) को अपनी ओर खींचती रही है। यहां चार धामों (Chardham Yatra)- बद्रीनाथ ( Badrinath), केदारनाथ (Kedarnath), गंगोत्री (Gangotri) और यमुनोत्री (Yamunotri) का पवित्र स्थल है, जिन्हें हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व दिया जाता है। ये धाम न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र हैं बल्कि अपनी मनमोहक प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी विख्यात हैं। विश्व विख्यात चारधाम यात्रा में इस बार आस्था, भक्ति और उल्लास अपने चरम पर है। ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग श्रीकेदारनाथ के दर्शन के लिए आने वाले यात्रियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। आंकड़ों पर गौर करें तो चारों ...

होली सबकी प्रीति, राष्ट्र की रीति

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- हृदयनारायण दीक्षित प्रकृति नित्य नूतन है। चिरन्तन और आनंदरस से परिपूर्ण। इसके अन्तःपुर में आनंदरस का महास्रोत है। भारतीय चिन्तन में इस स्रोत का नाम है-उत्स। उत्सव इसी आनंद रस का आपूरण है। यूरोप और अमेरिकी समाजों के उत्सव बाजार तय करता है और भारत के उत्सव तय करता है देश-काल। प्रकृति दर्शनीय है। नदियां हंसती नृत्य करती गति करती हैं। नदियों के तट पर उत्सव और नृत्य। काल सबका नियंता है। भारतीय उत्सवों में प्रकृति और मुहूर्त की जुगुलबन्दी है। होली भारत के मन का सामूहिक उल्लास है। द्यावा-अंतरिक्ष मदनरस, आनंदरस और प्रीतिरस का वातायन। होली वसंतोत्सवों का चरम है और वसन्त है प्रकृति का अपनी परिपूर्णता में खिलना। प्रकृति सदाबहार नायिका है। प्रकृति में नियमबद्धता है। वैदिक ऋषियों ने सृष्टि के इस संविधान को ऋत कहा, ग्रीष्म, वर्षा, शिशिर, हेमंत, पतझड़ और बसंत इसी ऋत के ऋतु-रूप हैं। वसंत परिपूर्ण प्रा...
भारत की आत्मा को पहचानने की जरूरत

भारत की आत्मा को पहचानने की जरूरत

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- गिरीश्वर मिश्र 'भारत' और उसके सत्व या गुण-धर्म रूप 'भारतीयता' के स्वभाव को समझने की चेष्टा यथातथ्य वर्णन के साथ ही वांछित या आदर्श स्थिति का निरूपण भी हो जाती है। भारतीयता एक मनोदशा भी है। उसे समझने के लिए हमें भारतीय मानस को समझना होगा । यह सिर्फ ज्ञान का ही नहीं बल्कि भावना का भी प्रश्न है और इसमें जड़ों की भी तलाश सम्मिलित है। आज इस उपक्रम के लिए कई विचार-दृष्टियां उपलब्ध हैं जिनमें पाश्चात्य ज्ञान-जन्य दृष्टि निश्चित रूप से प्रबल है जिसने औपनिवेशिक अवधि में एक आईने का निर्माण किया जो राजनैतिक–आर्थिक वर्चस्व के साथ लगभग सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत हो गया यद्यपि उसके पूर्वाग्रह दूषित करने वाले रहे हैं । उसकी बनाई छवि या आत्मबोध ने एक इबारत गढ़ी जो औपनिवेशिक शिक्षा द्वारा आत्मसात् कराई गई। इस क्रम में अंग्रेजी राज का 'अन्य' भारतीय जनों द्वारा 'आत्म' के रूप में अंगीकार किया गया । वेश-भू...
दीपावली: प्रकाश सनातन ज्योतिर्गमय की आकांक्षा

दीपावली: प्रकाश सनातन ज्योतिर्गमय की आकांक्षा

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- हृदयनारायण दीक्षित प्रकृति विराट है। अनंत आयामी है। बहुरूपवती है। यह सदा से है। प्रतिपल नए रूप में होती है। सभी रूप दर्शनीय हैं लेकिन इसकी श्रेष्ठतम अभिव्यक्ति प्रकाश है। छान्दोग्य उपनिषद् के अनुसार 'प्रकृति का समस्त सर्वोत्तम प्रकाश रूप है।' सूर्य प्रकृति का भाग हैं। वैदिक वांग्मय में देवता हैं। सहस्त्र आयामी प्रकाशदाता हैं। जहां जहां प्रकाश की सघनता वहां वहां दिव्यता। वैदिक पूर्वज प्रकृति में भरी पूरी प्रकाश ऊर्जा का केन्द्रक न्यूक्लियस जानना चाहते थे-पृच्छामि तवां भुवनस्य नामिः?। जिज्ञासा बड़ी है। कठोपनिषद्, मुण्डकोपनिषद् व श्वेताश्वतर उपनिषद् में उसी केन्द्र की बात कही गई है 'उस केन्द्र पर सूर्य प्रकाश नहीं। चन्द्र किरणों का भी नहीं। न विद्युत और न अग्नि लेकिन उसी एक ज्योति केन्द्र से यह सब प्रकाशित है।' अष्टावक्र ने राजा जनक को बताया कि वही एक ज्योति-ज्योर्तिएकं है। प्रकाश प्रा...
विशेष: अच्छा होगा पर्यावरण तो अच्छा होगा स्वास्थ्य

विशेष: अच्छा होगा पर्यावरण तो अच्छा होगा स्वास्थ्य

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- योगेश कुमार गोयल पर्यावरणीय स्वास्थ्य का मानव स्वास्थ्य से गहरा संबंध है। हमारा पर्यावरण जितना स्वस्थ होगा, हमारा स्वास्थ्य भी उतना ही अच्छा होगा। इसका सीधा सा अर्थ है कि हम अपने स्वास्थ्य के लिए काफी हद तक पर्यावरण के प्रति उत्तरदायी हैं और इसलिए पर्यावरणीय स्वास्थ्य की सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारी प्रमुख जिम्मेदारी है। उत्तम स्वास्थ्य के साथ प्रकृति और पर्यावरण हमें भोजन, कपड़े इत्यादि जीवित रहने के लिए भी हर चीज प्रदान करते हैं, इसलिए न केवल स्वस्थ रहने के लिए बल्कि धरती पर जीवन का अस्तित्व बचाए रखने के लिए प्रकृति और पर्यावरण का ध्यान रखा जाना बेहद जरूरी है लेकिन गहन चिंता का विषय यही है कि अब प्रकृति के साथ मानव जाति द्वारा किए जा रहे खिलवाड़ के कारण ही वैश्विक पर्यावरण को गंभीर नुकसान हो रहा है, जिसका खामियाजा अब दुनिया के लगभग तमाम देश भुगत भी रहे हैं। विकास के नाम पर प्रकृति के सा...
विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस: समझनी ही होगी प्रकृति की मूक भाषा

विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस: समझनी ही होगी प्रकृति की मूक भाषा

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- योगेश कुमार गोयल प्रदूषित हो रहे पर्यावरण के आज जो भयावह खतरे हमारे सामने आ रहे हैं, उनसे शायद ही कोई अनभिज्ञ हो और हमें यह स्वीकार करने से भी गुरेज नहीं करना चाहिए कि इस तरह की समस्याओं के लिए कहीं न कहीं जिम्मेदार हम स्वयं भी हैं। पेड़-पौधों की अनेक प्रजातियों के अलावा बिगड़ते पर्यावरणीय संतुलन और मौसम चक्र में आते बदलाव के कारण जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियों के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। हमें यह भली-भांति जान लेना चाहिए कि इन प्रजातियों के लुप्त होने का सीधा असर समस्त मानव सभ्यता पर पड़ना अवश्वम्भावी है। सबसे पहले यह जानना बेहद जरूरी है कि प्रकृति आखिर है क्या? प्रकृति के तीन प्रमुख तत्व हैं जल, जंगल और जमीन, जिनके बगैर प्रकृति अधूरी है और यह विडम्बना है प्रकृति के इन तीनों ही तत्वों का इस कदर दोहन किया जा रहा है कि इसका संतुलन डगमगाने लगा है, जिसकी परिणति अक्सर भयावह प्र...