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भाजपा: वैचारिक धुंधकाल के निराकरण का तंत्र

भाजपा: वैचारिक धुंधकाल के निराकरण का तंत्र

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- प्रवीण गुगनानी विमर्श या नैरेटिव के नाम पर भारत में एक अघोषित युद्ध चला हुआ है। इन दिनों भारत में चल रहा विमर्श शुद्ध राजनैतिक है। राजनीति और कुछ नहीं समाज का एक संक्षिप्त प्रतिबिंब ही है। विमर्श में यह प्रतिबिंब विषय व समयानुसार कुछ छोटा या बड़ा होता रह सकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचार परिवार के राजनैतिक दल भारतीय जनता पार्टी की राजनीति को यदि हम सामाजिक प्रतिबिंब के रूप में देखें तो हमें वैचारिक प्रतिबंधों, वर्जनाओं और सीमाओं से मुक्ति मिल जाती है। वैचारिक दृष्टि से देखें तो भाजपा एकमात्र भारतीय राजनैतिक दल है जो वैचारिक दासता से मुक्त है। भाजपा अपने चिर परिचित हिंदुत्वशाली आग्रहों पर अंगद, अटल है। नवीन व पुरातन का अभिनव संगम हो गई है भाजपा। वस्तुतः आरएसएस ने भाजपा के माध्यम से राजनीति एक विशाल, विराट व विमुक्त वैचारिक कैनवास हमें दिया है। हम भारत के राजनैतिक, अराजनैतिक और यह...
केजरीवाल नैरेटिव गढ़ने में उस्ताद

केजरीवाल नैरेटिव गढ़ने में उस्ताद

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- राजीव खंडेलवाल भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अलग शैली का आज पूरा विश्व कायल है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस शैली को अपनाने की कोशिश करते नजर आते हैं। वह तरह-तरह के नैरेटिव गढ़ते हैं। वह शुरू से प्रधानमंत्री को कटघरे में खड़ा करते रहे। बात नालियों को साफ करने की ही क्यों न रही हो। लेकिन उसके दुष्परिणाम स्वरूप आप दिल्ली की लोकसभा की सातों सीटें हार गई। नगर निगम में भी सफलता नहीं मिली। राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार के अनुसार जब कोई प्रियनेता लोकप्रिय हो, तब उस पर हमला करने का असर उल्टा ही होगा। जैसा ‘‘चांद पर थूका हुआ वापस थूकने वाले मुंह पर ही पड़ता है।’’ आप पंजाब चुनाव में उतरी तब प्रधानमंत्री पर केजरीवाल पुनः आक्रामक हो गए। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल का ध्येय वाक्य है ‘‘माल कैसा भी हो, हांक हमेशा ऊंची लगानी चाहिये’’। आगे उदाहरणों से आप इस बात को अच्छी त...