हिन्दुत्व में विश्व कल्याण की अभीप्सा
- ह्रदय नारायण दीक्षित
ब्रह्माण्ड रहस्यपूर्ण है। हम सब इसके अविभाज्य अंग हैं। यह विराट है। हम सबको आश्चर्यचकित करता है। इसकी गतिविधि को ध्यान से देखने पर तमाम प्रश्न उठते हैं। भारतीय ऋषि वैदिककाल से ही प्रकृति के गोचर प्रपंचों के प्रति जिज्ञासु रहे हैं। वैज्ञानिक भी प्रकृति के कार्य संचालन के प्रति शोधरत हैं। ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में अस्तित्व के विराट स्वरूप का मानवीकरण है। यह पुरुष सहस्त्र शीर्षा है - सहस्त्रों सिर वाला हैं। इस पुरुष के प्राण का विस्तार सम्पूर्ण विश्व की वायु है। पुरुष संपूर्ण अस्तित्व को आच्छादित करता है। संपूर्ण विश्व इसका एक चरण है। इसके तीन चरण अन्य लोकों में हैं। पुरुष चेतन, अचेतन, मनुष्य, पशु, कीट ,पतिंग, नदी समुद्र आदि सभी जीवों पदार्थों में व्याप्त है। जो अब तक हो चुका है, भविष्य में जो होने वाला है, वह सब यही पुरुष ही है। यह ज्ञात भाग से बड़ा कहा गया है। हिन्दू ...