मोबाइल फोन की गिरफ्त में बचपन
- आशुतोष दुबे
भागदौड़ भरी जिंदगी से कुछ समय निकालकर अपनी दिनचर्या पर नजर डालेंगे तो आपका अधिकतम समय मोबाइल फोन के साथ ही बीतता है। व्यक्ति की इसी कार्यशैली का अनुकरण घर-परिवार के बच्चे भी कर रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि बच्चों का बचपन मोबाइल की गिरफ्त में धीरे-धीरे आता जा रहा है और बालमन परिवर्तित हो जाता है, हमें पता ही नहीं चलता। पहले के समय में बच्चा दादा-दादी, चाचा-चाची या घर के अन्य सदस्यों की ममता भरी गोद में कविता, कहानी सुनते हुए, खेल खेलते हुए, सीखते हुए आगे बढ़ता था। आज वह मोबाइल के सहारे आगे बढ़ रहा है और तो और यदि घर में कोई सदस्य नहीं होता है तो ध्यान करिए पास पड़ोसियों के पास जाकर खेलता कूदता था। उसके लालन पोषण में जो पास-पड़ोस के लोगों का योगदान होता था, जो अब यह नहीं दिखता है।
समय रहते इस गंभीर विषय पर हमें सोचना होगा। सचेत होना होगा। नहीं तो आने वाले समय में परिणाम बहुत...