Friday, November 22"खबर जो असर करे"

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गोर्बाच्येव थे रूसी महानायक

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- डा. वेदप्रताप वैदिक मिखाइल गोर्बाच्येव के निधन पर पश्चिमी दुनिया ने गहन शोक व्यक्त किया है। शोक तो व्लादिमीर पूतिन ने भी प्रकट किया है लेकिन रूस के इतिहास में जैसे व्लादिमीर इलिच लेनिन का नाम अमर है, वैसे ही गोर्बाच्येव का भी रहेगा। रूस के बाहर की दुनिया शायद लेनिन से ज्यादा गोर्बाच्येव को याद करेगी। यह ठीक है कि लेनिन के प्रशंसक और अनुयायी चीन से क्यूबा तक फैले हुए थे और माओ त्से तुंग से लेकर फिदेल कास्त्रो तक लेनिन की विरुदावलियां गाया करते थे लेकिन गोर्बाच्येव ने जो कर दिया, वह एक असंभव लगने वाला कार्य था। उन्होंने सोवियत संघ को कम्युनिस्ट पार्टी के शिकंजे से बाहर निकाल दिया, सारी दुनिया में फैले शीतयुद्ध को विदा कर दिया, सोवियत संघ से 15 देशों को अलग करके आजादी दिलवा दी, दो टुकड़ों में बंटे जर्मनी को एक करवा दिया, वारसा पेक्ट को भंग करवा दिया, परमाणु-शस्त्रों पर नियंत्रण की कोशिश की ...

स्मृति शेष-मिखाइल गोर्बाचेवः कभी न भूलने वाली 01 दिसंबर, 1991 की वो शाम

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जन्मः 02 मार्च, 1931, निधनः 30 अगस्त, 2022 - मुकुंद रशियन टेलीविजन पर 01 दिसंबर, 1991 को शाम के बुलेटिन की शुरुआत नाटकीय घोषणा के साथ हुई थी- 'गुड इवनिंग। इस वक्त की खबर है- अब सोवियत संघ का अस्तित्व नहीं रहा...।' दरअसल इससे कुछ दिन पहले ही रूस, बेलारूस और यूक्रेन के नेताओं ने सोवियत संघ से अलग होने को लेकर मुलाकात की थी। इस मुलाकात में स्वतंत्र राज्यों के एक राष्ट्रमंडल के गठन का मुद्दा भी था। इस मुलाकात में आठ अन्य सोवियत राज्यों ने भी इस राष्ट्रमंडल का हिस्सा बनने का फैसला किया था। इन सबने तत्कालीन राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव को दरकिनार करने का फैसला किया था। और इस घटनाक्रम के बाद 25 दिसंबर, 1991 को गोर्बाचेव ने सोवियत संघ के राष्ट्रपति पद से इस्तीफा की घोषणा की थी। तब क्रेमलिन में सोवियत झंडे को आखिरी बार झुकाया गया। सोवियत साम्राज्य के पतन का श्रेय रोनाल्ड रीगन ने अमेरिका को दिया था...