Friday, September 20"खबर जो असर करे"

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मानसिक गुलामी से मुक्ति की आवश्यकता

अवर्गीकृत
- गिरीश्वर मिश्र अमृत-महोत्सव के संदर्भ में प्रधानमंत्री ने गुलामी की मानसिकता से मुक्त होने का आह्वान किया है । यह इसका स्मरण दिलाता है कि देश की आजादी अधूरी है। हम आज भी मानसिक रूप से पूरी तरह से स्वाधीन नहीं हो सके हैं। पराधीनता के बंधन में दास स्वामी की दृष्टि से स्वयं को और अपनी दुनिया को देखने का भी अभ्यस्त हो जाता है। अभ्यास में आने के बाद जब हम उसके आदी हो जाते हैं तो हमारी भावना, विचार और कर्म सभी उससे अनुबंधित हो जाते हैं। उसकी तीव्रता का अहसास भी खत्म होने लगता है और तब दासता दासता नहीं रह जाती। स्वतंत्रता की भ्रामक चेतना में गुलाम अपने आका की खुशी में ही अपनी भी खुशी देखता है। गुलामी की सोच या मनोवृत्ति (माइंड सेट) संकुचित या प्रतिबंधित दृष्टि के साथ बंधी बंधाई लीक पर चलने को बाध्य करती है। अनुगमन और अनुकरण करते रहना अपनी नियति मान कर इस तरह की सोच सर्जनात्मकता से भी विमुख करत...