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मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियां

मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियां

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- गिरीश्वर मिश्र आयुर्वेद के अनुसार यदि आत्मा, मन और इंद्रियां प्रसन्न रहें तो आदमी को स्वस्थ कहते हैं । ऐसा स्वस्थ आदमी ही सक्रिय हो कर उत्पादक कार्यों को पूरा करते हुए न केवल अपने लक्ष्यों की पूर्ति कर पाता है बल्कि समाज और देश की उन्नति में योगदान भी कर पाता है । निश्चय ही यह एक आदर्श स्थिति होती है परंतु यह स्थिति किसी भी तरह निरपेक्ष नहीं कही जा सकती। जीवन का आरम्भ और जीने की पूरी प्रक्रिया परिस्थितियों के बीच उन्हीं के विभिन्न अवयवों से बनते-बिगड़ते एक गतिशील परिवेश के बीच आयोजित होती है । उदाहरण के लिए देखें तो पाएंगे सांस लेना भी परिवेश से मिलने वाले आक्सीजन पर निर्भर करता है जो नितांत स्वाभाविक और प्राकृतिक लगता है पर प्रदूषण होने पर या फेफड़े में संक्रमण हो तो मुश्किल हो जाती है । कोविड महामारी में यह सबने बखूबी देखा और पाया था । वस्तुतः हमारा परिवेश भौतिक, सामाजिक और मानसिक हर...

इसलिए जरूरी है एकीकृत चिकित्सा प्रणाली

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- डॉ. विपिन कुमार हाल के दशकों में संपूर्ण विश्व में योग का चलन तेजी से बढ़ा है। यह हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने का महत्वपूर्ण जरिया होने के साथ ही, आध्यात्मिक प्रगति के लिए भी जरूरी है। यह एक ऐसी विधा है, जिससे हमारी नैतिक शक्ति शाश्वत मूल्यों का विकास होता है। जब हम बात योग की कर रहे हों, तो वहां महर्षि पतंजलि का नाम लेना अनिवार्य है। महर्षि पतंजलि को योग का पितामह माना जाता है। उन्होंने न सिर्फ योग के 196 सूत्रों को सहेजा, बल्कि इसे धर्म और अंधविश्वास से बाहर निकालते हुए आम लोगों के लिए भी सहज बनाया। लेकिन समय के बहाव के साथ योग भारतीय जीवन शैली से गायब हो गया। 19वीं और 20वीं सदी के दौरान योग का फिर पदार्पण हुआ। इस कालखंड में योग को बढ़ावा देने में स्वामी विवेकानंद, परमहंस योगानंद, तिरुमलई कृष्णामाचार्य, स्वामी शिवानंद, आचार्य बीकेएस आयंगर जैसे महर्षियों का महत्वपूर्ण...