हिन्दीः संयुक्त राष्ट्र संघ की सातवीं भाषा बनने के मायने
- डॉ. विपिन कुमार
हिन्दी की हमारी राष्ट्रीय एकता और विकास में बड़ी भूमिका है। यह न सिर्फ हमारी अस्मिता की पहचान है, बल्कि हमारे आदर्शों, संस्कृति और परम्परा की परिचायक भी है। यह अपनी सरलता, सहजता और सुगमता के कारण एक वैज्ञानिक भाषा के रूप में निरंतर नई पहचान कायम कर रही है। हालांकि, हिन्दी के लिए यहां तक पहुंचने की राह आसान नहीं रही है। जैसा कि भारत शुरू से ही संयुक्त राष्ट्र संघ के संस्थापक सदस्यों में रहा है। लेकिन, इसके बावजूद कुछ राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों की वजह से हम हिन्दी को इसकी आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिलाने के लिए दशकों तक संघर्ष करते रहे। हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाने में हमने तो प्रयास किए ही, लेकिन इस कड़ी में हमें मॉरीशस, रूस जैसे देशों से भी हर मौके पर काफी मदद मिली है।
साल 1975 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अगुवाई ...