दुनिया को समझना होगा ‘माता भूमि, पुत्रोह्म पृथिव्या:’ का निहितार्थ
- कुल भूषण उपमन्यु
आज प्लास्टिक, मिट्टी, पानी, और वायु का प्रदूषक बनता जा रहा है। जमीन पर पड़े हुए प्लास्टिक से धूप के कारण अपर्दन से टूटकर सूक्ष्म कण मिट्टी में मिल जाते हैं और मिट्टी के उपजाऊपन को नष्ट करने का काम करते हैं। पानी में मिल कर मछलियों के शरीर में पहुंच कर खाद्य शृंखला का भाग बन कर मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बन जाते हैं। जलाए जाने पर वायु में अनेक विषैली गैसें वायु मंडल में छोड़ते हैं जिससे वैश्विक तापमान वृद्धि के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरे पैदा हो रहे हैं।
प्लास्टिक दैनिक जीवन का ऐसा भाग बन गया है कि इससे बचना बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। प्लास्टिक का प्रयोग कम करना, पुनर्चक्रीकरण, और जो बच जाए उसको उत्तम धुआं रहित प्रज्वलन तकनीक से ताप विद्युत बनाने में प्रयोग किया जा सकता है। हालांकि इससे भी थोड़ा गैस उत्सर्जन तो होता है किन्तु जिस तरह शहरी कचरा डंपिंग...