Friday, September 20"खबर जो असर करे"

Tag: Maryada Purushottam

जैन साहित्य में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम

जैन साहित्य में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम

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- श्रमण डॉ. पुष्पेन्द्र कुलों को धारण करने वाले कुलकर कहलाते हैं, जिन्हें 'मनु' भी कह कहते हैं। अंतिम कुलकर नाभिराय थे, जिन्हें तिलोयपणत्ती में भी मनु कहा गया है। इसके अनंतर श्लाका पुरुषों का उल्लेख आता है। उसमें 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 बलभद्र, 9 नारायण और 9 प्रति नारायण इस तरह कुल 63 शलाका पुरुष हुए हैं। नौ बलदेवों में 'राम' का उल्लेख है। प्रागैतिहासिक काल में राम को पुरुषोत्तम कहा गया है। वे असाधारण व्यक्तित्व के धनी थे। वे “नरत्त्व” से “नारायणत्व”की ओर अग्रसर हुए, उन्हें परम प्रतापी, धर्मज्ञ, कर्तव्य परायण, पितृ आज्ञाकारी, मातृशक्ति के प्रति आस्थावंत, गम्भीर, धीर-वीर एवं नैतिक गुणों से परिपूर्ण परिलक्षित किया गया है। प्राकृत में रचित अनेक काव्यों में 'राम' को “पद्म” भी कहा गया है। विमलसूरि ने “पउमचरियं” नामक ग्रन्थ की प्राकृत में रचना की है। यह काव्य पौराणिक है, इसमें 'राम' क...
श्रीराम की अयोध्या और जीवन संस्कार का संदेश

श्रीराम की अयोध्या और जीवन संस्कार का संदेश

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- प्रभुनाथ शुक्ल श्रीराम हमारे आराध्य हैं। वह सनातन संस्कृत के ध्वजवाहक हैं। राम सिर्फ मर्यादा पुरुषोत्तम ही नहीं हमारे समग्र संस्कार में समाहित हैं। राम के बिना पूरी हिंदू संस्कृति अधूरी है। वह जीवन दर्शन हैं। श्रीराम हमारे संस्कार हैं। हमें सद्चरित्र देते हैं। अत्याचार से लड़ने की ताकत देते हैं। विषम परिस्थितियों में भी जीवन को कैसे जिया जाए यह भी बताते हैं। श्रीराम के लिए धन, वैभव, यश, मान, सम्मान से कहीं अधिक ऊंचा उनका आचरण है। उन्हें सत्ता नहीं सदाचार प्रिय है। वह हमेशा मर्यादा में रहना चाहते हैं और हर प्राणी के सम्मान की रक्षा चाहते हैं। वह प्रजारंजक हैं। उपकार और परोपकार उनका जीवन दर्शन है। इसलिए राम हमारे कण-कण में विराजमान है। श्रीराम को भगवान के रूप में पूजने के बजाय हम उन्हें लोकनायक के रूप में अधिक समझ सकते हैं। तभी हमें चैत रामनवमी की सार्थकता समझ में आएगी। अयोध्या श्रीराम क...
प्रासंगिक हैं जन-जन के श्रीराम

प्रासंगिक हैं जन-जन के श्रीराम

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- सुरेन्द्र किशोरी दुनिया में जहां कहीं भी सनातन धर्मावलंबी हैं, वहां मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की पूजा आदर्श के रूप में होती है। खासकर भारतीय धर्म-संस्कृति में भगवान श्रीराम का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। कोटि-कोटि हृदयों में प्रभु श्रीराम के प्रति गहन आस्था है। राष्ट्र जागरण एवं विश्व परिवर्तन के वर्तमान परिवेश में वह और भी अधिक प्रासंगिक एवं पूजनीय बन चुके हैं। उनका शौर्य, उनकी मर्यादा, उनका संघर्ष, उनका अनीति उन्मूलन के प्रति प्रचंड पुरुषार्थ एवं आदर्श राज्य व्यवस्था रामराज्य के सर्व कल्याण की प्रेरक प्रतिष्ठापनाएं जन-जन में उत्कृष्ट भाव-संवेदनाएं जगाती है। प्रखर पुरुषार्थ पराक्रम के लिए प्रेरित करती हैं। वर्तमान में जब अंधकार का युग तिरोहित हो रहा है, नवयुग का सूर्योदय हो रहा है, प्रभु श्रीराम का महान गौरवशाली जीवन दिव्य प्रकाशस्तंभ की तरह मार्गदर्शन करने को पूर्ण तत्पर है। भा...