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महाशिवरात्रि: शिवतत्व का मर्म मंगलकारी

महाशिवरात्रि: शिवतत्व का मर्म मंगलकारी

अवर्गीकृत
- सुरेन्द्र किशोरी देवाधिदेव महादेव शिव का अर्थ कल्याण होता है। इस शिवतत्व को जीवन में उतारने वाले का अमंगल कभी नहीं होता। व्यक्ति धीरे-धीरे आत्मोन्नति करता हुआ चरम लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। महाशिवरात्रि का वास्तविक उद्देश्य यही है। महाशिवरात्रि का व्रत फाल्गुन कृष्णा चतुर्दशी को होता है। शिव का स्थान हिंदू धर्म में सर्वोपरि है। शिव ही ऐसे देवता हैं, जो संपत्ति और वैभव के बदले त्याग और अकिंचनता को वरण करते हैं। वह सर्वशक्तिमान हैं। शिव का तीसरा नेत्र बड़ी से बड़ी शक्ति को जलाकर राख करने की क्षमता रखता है। यह सब होने पर भी शिव सदा नंगे-दिगंबर, दीन-हीन, भूत-प्रेतों के साथी बने रहते हैं। उन्होंने अमृत को त्यागकर जहर पिया। हाथी तथा घोड़े को छोड़कर बैल की सवारी स्वीकार की। हीरा, मोती, रत्नों को त्यागकर सर्प और नरमुंडों का आभूषण अपनाया। महाशिवरात्रि का पर्व हम सबको लोभ, मोह, लालसा के स्थान प...