Friday, November 22"खबर जो असर करे"

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जनादेश का सम्मान

जनादेश का सम्मान

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- डॉ. दिलीप अग्निहोत्री इस बार चुनाव के दौरान संविधान से संबंधित मुद्दे चर्चा में रहे। चुनाव प्रचार के दौरान सत्ता पक्ष पर संविधान बदलने का आरोप लगाया गया लेकिन यह मुद्दा कौआ कान ले गया कहावत को चरितार्थ करने वाला था। जिस सरकार ने दस वर्षों तक संविधान बदलने का कोई प्रयास नहीं किया, उस पर संविधान बदलने का आरोप निराधार था। भारत में संविधान बदलना संभव भी नहीं है। इतना अवश्य है कि सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाया। यह संविधान का अस्थाई उपबंध था। इसको हटाना संविधान सम्मत था। इसके आलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में उत्पीड़ित लोगों के लिए नागरिकता कानून में संशोधन किया। यह मानवीय निर्णय था। इससे बड़ी संख्या में हिंदू, सिख और जैन परिवारों को उत्पीड़न से मुक्ति मिली। सरकार ने संविधान दिवस मनाने का निर्णय किया था। यह संविधान और संविधान निर्माताओं के प्रति सम्मान था। डॉ. आंब...
इस बार जनादेश के मायने

इस बार जनादेश के मायने

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- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा अठारहवीं लोकसभा के चुनाव परिणाम ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है कि मतदाता के मन को समझना इतना आसान नहीं हैं। इसी तरह से एग्जिट पोल के परिणामों और धरातलीय परिणामों में अंतर से साफ हो जाता है कि मतदाता खुलता भी नहीं है तो किसके पक्ष में मतदान करके आया है उसे वह मुखर होकर बताता भी नहीं है। चुनाव परिणामों से सट्टा बाजार की भी पोल खुल कर रह गई है। ऐसे में सवाल यह हो जाता है कि मतदाता इस जनादेश के माध्यम से आखिर संदेश क्या देना चाहते है? लोकसभा चुनाव परिणाम से यह तो साफ हो गया है कि मतदाता ने एनडीए को तीसरी बार सरकार चलाने का अवसर दे दिया है। बहुमत के 272 की तुलना में एनडीए को 293 सीटें मिली हैं। यह अलग बात है कि पिछले दो चुनावों की तरह इस बार भाजपा अकेले स्पष्ट बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाई। बावजूद इसके वह लोकसभा में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी है। देखा जाए तो 10 सा...
महाराष्ट्र में जनादेश का सम्मान

महाराष्ट्र में जनादेश का सम्मान

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- डॉ. दिलीप अग्निहोत्री महाराष्ट्र में पिछले विधानसभा चुनाव का जनादेश भाजपा-शिवसेना के लिए था। उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर उस जनादेश को अपमानित किया था। इसमें सुधार एकनाथ शिंदे ने किया। उन्होंने बाला साहब ठाकरे की विरासत के अनुरूप भाजपा के साथ सरकार बनाई। अब अजित पवार ने उस जनादेश को मजबूत बनाने का कार्य किया है। कुछ दिन पहले पटना में विपक्षी नेता गठबंधन बनाने के लिए मिले थे। सबकी अपनी अपनी महत्वाकांक्षा जगजाहिर है। कोई भी किसी दूसरे को प्रधानमंत्री बनते नहीं देखना चाहता। इसलिए पटना में बात नहीं बनीं। एक और बैठक होगी। उसके पहले ही महाराष्ट्र का महाआघाड़ी दूसरी बार बिखर गया। पहली बार एकनाथ शिंदे ने कथित सेक्युलर राजनीति से परेशान होकर महा आघाड़ी को छोड़ा। अब एनसीपी को छोड़कर अजित पवार शिंदे-भाजपा सरकार में शामिल हो गए। अजित पवार के साथ करीब तीस विधायकों के समर्थन का दावा...
पूर्वोत्तर का जनादेश और वैरियर एल्विन का पिंडदान…!

पूर्वोत्तर का जनादेश और वैरियर एल्विन का पिंडदान…!

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- डॉ. अजय खेमरिया पूर्वोत्तर के तीन राज्यों ने जो जनादेश दिया है उसके तीन महत्वपूर्ण राजनीतिक आयाम हैं। चेन्नई में एक दिन पहले मुख्यमंत्री स्टालिन के जन्मदिन पर विपक्षी एकता का जो जमावड़ा जुटा था वह एक सियासी सर्कस साबित हुआ। क्योंकि त्रिपुरा में वामपंथी और कांग्रेस मिलकर भी भाजपा के विजय रथ को रोक नही पाए। इसलिए 2024 में संयुक्त विपक्ष की अवधारणा स्टालिन के जन्मदिन के 24 घंटे में ही कमजोर पड़ गई। दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण है पूर्वोत्तर में "स्व"के भाव का प्रकटीकरण। देश के इस हिस्से को स्वाधीनता के बाद नेहरू जी ने एक मिशनरी एजेंट के रूप में आये कथित मानव विज्ञानी वेररियर एल्विन के हवाले करके जो डेमोग्राफिक बदलाब यहां खड़ा किया आज उसकी विदाई के तत्व भी इस जनादेश में छिपे हैं। राजनीतिक विमर्श नवीसी में आज भी भाजपा को काऊ बैल्ट की पार्टी कहने वालों के लिए भी यह जनादेश एक बड़े धक्के से कम नही ह...

जनादेश से नीतीश का विश्वासघात

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- डॉ. दिलीप अग्निहोत्री बिहार में भाजपा और जेडीयू गठबंधन को पांच वर्ष सरकार चलाने का जनादेश मिला था। मगर सुशासन बाबू और जेडीयू नेता नीतीश कुमार जनादेश का अपमान कर नए साथियों के साथ आठवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर गदगद नजर आ रहे हैं। नीतीश कुमार ने बिहार के लोगों के साथ विश्वासघात किया है। इस समय अनेक क्षेत्रीय नेता अगले लोकसभा चुनाव के हसीन सपने देख रहे हैं। इसमें उन्हें देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल युग की वापसी नजर आ रही है। सपने को सच मानते हुए सभी क्षत्रप एक-दूसरे को पछाड़ने में लगे है। कांग्रेस राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती है। ममता बनर्जी और शरद पवार भी अभी से कमान अपने नियंत्रण में रखने की कवायद कर रहे है। यह सही है कि भाजपा के साथ सरकार चलाते हुए उनकी छवि सुशासन बाबू के रूप में स्थापित हुई है। उनके ऊपर घोटालों और परिवारवाद के आरोप नहीं हैं। इसलिए उनकी भी...