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इंदौर में दोहरा हत्याकांड, महिला और पुरुष की धारदार हथियार से हत्या

इंदौर में दोहरा हत्याकांड, महिला और पुरुष की धारदार हथियार से हत्या

देश, मध्य प्रदेश
इंदौर। शहर के एरोड्रम थाना क्षेत्र के अशोक नगर में शनिवार को दोहरा हत्याकांड हो गया। यहां एक महिला और पुरुष की गला रेतकर हत्या कर दी गई। हत्या किसने और क्यों की, पुलिस इसकी जांच कर रही है। आरोपितों की तलाश के लिए सीसीटीवी फुटेज की छानबीन की जा रही है। एरोड्रम थाना प्रभारी राजेश साहू के अनुसार पुरुष का नाम रवि ठाकुर है और वह होटल व्यवसायी था। वहीं महिला का नाम सरिता नरवरिया बताया जा रहा है। दोनों के शव एक कमरे में मिले। हत्या को अवैध संबंध से जोड़कर भी देखा जा रहा है। पुलिस हत्या की वजह और आरोपितों की तलाश में जुटी है। बदमाशों ने मकान की तीसरी मंजिल पर हत्याकांड को अंजाम दिया। रवि ठाकुर सरवटे बस स्टैंड स्थित होटल वैष्णव संचालित करता था। घटना के दो घंटे बाद एडीसीपी आलोक शर्मा और मल्हारगंज एसीपी विवेक चौहान मौके पर पहुंचे। पुलिस ने आसपास के क्षेत्र को सील कर दिया है। हर वाहन की जांच की ...
दीपावली: आलोकित सजीव भारत हो !

दीपावली: आलोकित सजीव भारत हो !

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- गिरीश्वर मिश्र इतिहास गवाह है कि अंधकार के साथ मनुष्य का संघर्ष लगातार चलता चला आ रहा है । उसकी अदम्य जिजीविषा के आगे अंधकार को अंतत: हारना ही पड़ता है । वस्तुत: सभ्यता और संस्कृति के विकास की गाथा अंधकार के विरुद्ध संघर्ष का ही इतिहास है । मनुष्य जब एक सचेत तथा विवेकशील प्राणी के रूप में जागता है तो अंधकार की चुनौती स्वीकार करने पर पीछे नहीं हटता। उसके प्रहार से अंधकार नष्ट हो जाता है । संस्कृति के स्तर पर अंधकार से लड़ने और उसके प्रतिकार की शक्ति को जुटाते हुए मनुष्य स्वयं को ही दीप बनाता है । उसका रूपांतरण होता है । आत्म-शक्ति का यह दीप उन सभी अवरोधों को दूर भगाता है जो व्यक्ति और उसके समुदाय को उसके लक्ष्यों से विचलित करते हैं या भटकाते हैं । सच कहें तो मनुष्य की जड़ता और अज्ञानता मन के भीतर पैठे अंधकार के ऐसे प्रतिरूप हैं जो खुद उसकी अपनी पहचान को आच्छादित किए रहते हैं । वे हम...
…तो रोबोट करेंगे काम, आदमी करेगा आराम

…तो रोबोट करेंगे काम, आदमी करेगा आराम

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- मुकुंद '...तो रोबोट करेंगे काम, आदमी करेगा आराम' इस शीर्षक में कुछ भी चौंकाने वाला नहीं है। जी हां, 2023 की आठ जुलाई को इसके संकेत मिल चुके हैं। इसे सनद भी किया जाना चाहिए। इसलिए कि स्विट्जरलैंड के जिनेवा में आठ जुलाई को दुनिया का पहला स्मार्ट रोबोट संवाददाता सम्मेलन हो चुका है। इस संवाददाता सम्मेलन से हम में से बहुतेरे अनजान होंगे। इस संवाददाता सम्मेलन में रोबोट्स के साथ हुए सवाल-जवाब ने इस बात के भी ठोस संकेत दे दिए कि भविष्य की दुनिया कैसी होगी। यह इनसानी दिमाग के लिए हाई वोल्टेज लाइन के करंट के झटके जैसा है। मगर तैयार हो रही रोबोट की भावी रणनीति का सामना तो करना ही होगा। आज नहीं तो कल, यह होकर ही रहेगा। यकीन मान लीजिए, वह समय जल्द आने वाला है। आदमी (सामर्थ्यवान) आराम करेंगे और उनका काम रोबोट करेंगे। इस पहले संवाददाता सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंचे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संचालित ...
श्रेष्ठ राजव्यवस्था और आनंददायी समाज

श्रेष्ठ राजव्यवस्था और आनंददायी समाज

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- हृदयनारायण दीक्षित दुनिया के सभी समाज सुख और आनंद के इच्छुक रहते हैं। सुख और दुख बारी बारी से आते जाते हैं। मनुष्य समाज का अंग है। लेकिन अनेक अवसरों पर मनुष्य और समाज के बीच अंतर्विरोध भी दिखाई पड़ते हैं। मनुष्य प्रकृति का भी अंग है। लेकिन मनुष्य और प्रकृति के बीच अंतर्विरोध भी होते हैं। यह मनुष्य को दुखी करते हैं। समाज शांतिपूर्ण ढंग से रहने के लिए राजव्यवस्था विकसित करते हैं। महाभारत में राजा को काल का कारण बताया गया है। राजव्यवस्था समाज को सुखी बनाने के प्रयत्न करती है। राजा या राजव्यवस्था महत्वपूर्ण है। राजव्यवस्थाएं आनंदमगन समाज के लिए मार्ग प्रशस्त करती हैं। मनुष्य की अनेक मूलभूत आवश्यकताएं होती हैं। अनेक अभिलाषाएं होती हैं। ऋग्वेद (9.113.10 व 11) में प्रार्थना है, 'जहां सारी कामनाएं पूरी होती हैं। जहां सुखदाई तृप्तिदायक अन्न हों। हे देव हमें वहां स्थायित्व दें।' अन्न और कामनाओं क...
आइए लिखें नई इबारत

आइए लिखें नई इबारत

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- गिरीश्वर मिश्र नए के प्रति आकर्षण मनुष्य की सहज स्वाभाविक प्रवृत्ति है। ‘नया’ अर्थात जो पहले से भिन्न है। मौलिक है। अपनी अलग पहचान बनाता है। यह भिन्नता सृजनात्मकता का प्राण कही जाती है। उसी कृति या आविष्कार को प्रतिष्ठा मिलती है, पुरस्कार मिलता है जिसमें कुछ नयापन होता है, जो पुरानी घिसी-पिटी लीक पर न होकर उससे हट कर हो । हालांकि, एक सच यह भी है कि अक्सर नए को अपनी प्रतिष्ठा अर्जित करना आसान नहीं होता, उसे पुराने से टक्कर लेनी पड़ती है और प्रतिरोध की पीड़ा और उपेक्षा भी सहनी पड़ता है । कभी ऐसे ही क्षण में संस्कृत के शीर्षस्थ कवि कालिदास को यह कहना पड़ा कि ‘ पुराना सब अच्छा है और नया ख़राब है’ ऐसा तो मूढ़ और अविवेकी लोग ही सोचते हैं जो दूसरों की कही-कहाई बात सुन कर फैसला लेते हैं परंतु साधु या विवेकसम्पन्न लोग सोच-विचार कर और परख कर ही अच्छाई या बुराई का निश्चय करते हैं । नए के प्रति आकर...
औरत-मर्दः बाहरी एकरूपता

औरत-मर्दः बाहरी एकरूपता

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- डॉ. वेदप्रताप वैदिक न्यूयार्क टाइम्स ने अपने मुखपृष्ठ पर एक खबर छापी है कि अमेरिका में कई आदमी अब औरतों का वेश धारण करने लगे हैं और औरतें तो पहले से ही वहां आदमियों की वेशभूषा पहनते रही हैं। उनका कहना है कि कपड़ों में भी औरत-मर्द का भेद क्या करना? वह जमाना लद गया जब औरतों के लिए खास तरह की वेशभूषा, जेवर और जूते-चप्पल पहनना अनिवार्य हुआ करता था। उन्हें घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं होती थी। घूंघट और बुर्का लादना आवश्यक माना जाता था। हमारे संस्कृत नाटकों को देखें तो कालिदास और भवभूति जैसे महान लेखकों की रचनाओं में उनकी महिला पात्र संस्कृत में नहीं, प्राकृत में संवाद करती थीं। महिलाओं को पुरुषों के समान न हवन करने का अधिकार था और न ही जनेऊ धारण करने का! वेदपाठ करना तो उनके लिए असंभव ही था। आर्यसमाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद सरस्वती की कृपा से भारतीय स्त्रियों को इन बंधनों से मुक्ति मिली...
रामलीलाः ब्रह्म के मनुष्य होने की गाथा का मंचन

रामलीलाः ब्रह्म के मनुष्य होने की गाथा का मंचन

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- ह्रदय नारायण दीक्षित श्रीराम मंगल भवन हैं और अमंगलहारी। वे भारत के मन में रमते हैं। मिले तो राम राम, अलग हुए तो राम राम। राम का नाम हम सब बचपन से सुनते आए हैं। वे धैर्य हैं। सक्रियता हैं। परम शक्तिशाली हैं। भाव श्रद्धा में वे ईश्वर हैं। राम तमाम असंभवों का संगम हैं। युद्ध में पौरुष पराक्रम और निजी जीवन में मर्यादा के पुरुषोत्तम। राम भारतीय आदर्श व आचरण के शिखर हैं। भारतीय मनीषा ने उन्हें ब्रह्म या ईश्वर जाना है। श्रीकृष्ण भी विष्णु के अवतार हैं। वे अर्जुन को गीता (10.31) में बताते हैं- 'पवित्र करने वालों में मैं वायु हूं और शास्त्रधारियों में राम हूं।' राम महिमावान हैं। श्रीकृष्ण भी स्वयं को राम बताते हैं। श्रीराम प्रतिदिन प्रतिपल उपास्य हैं लेकिन विजयादशमी व उसके आगे-पीछे श्रीराम के जीवन पर आधारित पूरे देश में श्रीराम लीला के उत्सव होते हैं। सम्प्रति देश के कोने कोने रामलीला उत्सव चल ...
वैश्विक शांति के लिए धार्मिक सद्भाव

वैश्विक शांति के लिए धार्मिक सद्भाव

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- कुलभूषण उपमन्यु मनुष्य जैसे-जैसे सभ्यता की सीढ़ियां चढ़ता गया वैसे-वैसे जीवन को सुखी बनाने के उसने नए-नए रास्ते खोजने आरंभ किए। इसी खोज में धर्म का अविष्कार हुआ। बाहरी प्रयासों से मनुष्य के लिए समाज के भौतिक वस्तुओं को प्राप्त करने की होड़ और टकरावों को रोक पाना उतना आसान नहीं था। धर्म ने आंतरिक अनुशासन से इन टकरावों को कम करके सुखी जीवन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया। धीरे-धीरे धर्म जीवन से जुड़ी समस्याओं को और गहराई से देखने लगा। धर्म के साथ दार्शनिक सोच का आविर्भाव हुआ। दर्शन से तर्क पूर्ण सोच का उदय हुआ। अलग-अलग देशों के धर्मों ने अपने-अपने देशकाल जनित परिस्थितियों के अनुरूप धर्म के लक्ष्य निर्धारित करके संसार के पैदा होने के कारणों और संचालित होने के रहस्यों को जानने का प्रयास किया। उसके अनुरूप धार्मिक पद्धतियों का विकास हुआ। जाहिर है कि अलग -अलग देशकाल के कारण उनके निष्कर्ष अलग-अल...