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सनातन की सांस्कृतिक छाया में जी-20 सम्मेलन

सनातन की सांस्कृतिक छाया में जी-20 सम्मेलन

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- प्रमोद भार्गव राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन इस बार सनातन संस्कृति की छाया में होगा। इसी भाव को दृष्टिगत रखते हुए शिखर सम्मेलन स्थल पर भगवान शिव की 28 फीट ऊंची ‘नटराज‘ प्रतिमा को प्रतीक रूप में स्थापित किया गया है। इस प्रतिमा में शिव के तीन प्रतीक-रूप परिलक्षित हैं। ये उनकी सृजन यानी कल्याण और संहार अर्थात विनाश की ब्रह्मांडीय शक्ति का प्रतीक हैं। अष्टधातु की यह प्रतिमा प्रगति मैदान में 'भारत मंडपम्' के द्वार पर लगाई गई है। इस प्रतिमा की आत्मा में सार्वभौमिक स्तर पर सर्व-कल्याण का संदेश अंतर्निहित है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसी शाश्वत दर्शन से भारतीय संस्कृति के दो सनातन शब्द लेकर 'वसुधैव कुटुंबकम्' के विचार को सम्मेलन शुरू होने के पूर्व प्रचारित करते हुए कहा है कि 'पूरी दुनिया एक परिवार है।' यह ऐसा सर्वव्यापी और सर्वकालिक दृष्टिकोण है, जो हमें एक सार्वभौमिक परिव...
सावन का महीना और यादों में झूले…

सावन का महीना और यादों में झूले…

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- रमेश सर्राफ धमोरा पड़ गए झूले सावन रुत आई रे, सीने में हूक उठे अल्लाह दुहायी रे...। ऐसे गाने सावन आते ही लोगों की जुबान पर खुद-ब-खुद आ जाते हैं। पहले सावन शुरू होते ही गांव की गलियों से लेकर शहरों तक झूले पड़ते थे। महिलाएं झूला झूलतीं और गाती थीं। सावन और भादो का महीना हमें प्रकृति के और निकट ले जाता है। झूला झूलने के दौरान गाए जाने वाले गीत मन को सुकून देते हैं। झूले गांव के बागीचों और मंदिर के परिसरों में डाले जाते थे। सावन को बहुत पवित्र महीना माना जाता है। मान्यता है कि सावन में माता पार्वती ने भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें पाया था। सावन दक्षिणायन में आता है जिसके देवता शिव हैं। इसीलिए इन दिनों उन्हीं की आराधना शुभ फलदायक होती है। सावन के महीने में बहुत वर्षा होती है। इसलिए इसे वर्षा ऋतु का महीना या पावस ऋतु भी कहा जाता है। भारतीय संस्कृति में झूला झूलने की परम्परा वैदिक काल से है।...
कश्मीर रहा है सनातन हिंदू संस्कृति का गढ़

कश्मीर रहा है सनातन हिंदू संस्कृति का गढ़

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- प्रहलाद सबनानी अतिप्राचीन भारत में कैलाश पर्वत के आसपास भगवान शिव के गणों की सत्ता थी। इस इलाके में ही दक्ष राजा का साम्राज्य था। ऐसा माना जाता है कि कश्यप ऋषि कश्मीर के पहले राजा हैं । कश्मीर को उन्होंने अपने सपनों का राज्य बनाया। संभवतः कश्यप ऋषि के नाम पर ही कश्यप सागर (कैस्पियन सागर) और कश्मीर का प्राचीन नाम पड़ा। शोधकर्ताओं के अनुसार कैस्पियन सागर से लेकर कश्मीर तक ऋषि कश्यप के कुल के लोगों का राज फैला हुआ था। कश्यप की एक पत्नी कद्रू के गर्भ से नागों की उत्पत्ति हुई जिनमें प्रमुख 8 नाग थे- अनंत (शेष), वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक। इन्हीं से नागवंश की स्थापना हुई। आज भी कश्मीर में इन नागों के नाम पर ही कई स्थानों के नाम हैं। कश्मीर का अनंतनाग नागवंशियों की राजधानी हुआ करता था। हाल में अखनूर से प्राप्त हड़प्पाकालीन अवशेषों तथा मौर्य, कुषाण और गुप्त काल की कलाक...
महाशिवरात्रि विशेष: अमंगल हारी हैं देवाधिदेव भगवान शिव

महाशिवरात्रि विशेष: अमंगल हारी हैं देवाधिदेव भगवान शिव

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- योगेश कुमार गोयल देवाधिदेव भगवान शिव के समस्त भारत में जितने मंदिर अथवा तीर्थ स्थान हैं, उतने अन्य किसी देवी-देवता के नहीं। आज भी समूचे देश में उनकी पूजा-उपासना व्यापक स्तर पर होती है। महाशिवरात्रि को भगवान शिव का सबसे पवित्र दिन माना गया है, जो सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत भी है। भारत में धार्मिक मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि का बहुत महत्व है। यह आध्यात्मिक चरम पर पहुंचने का सुअवसर है। इस दिन भगवान शिव का जलाभिषेक करना बहुत पुण्यकारी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन जलाभिषेक के साथ भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने और व्रत रखने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं और उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। दाम्पत्य जीवन में प्रेम और सुख शांति बनाए रखने के लिए भी यह व्रत लाभकारी माना गया है। धर्मग्रंथों में भगवान शिव को ‘कालों का काल’ और ‘देवों का देव’ अर्थात् ‘महादेव’ कहा गया है। एक होते हु...

नागपंचमी विशेष: भगवान शिव को प्रिय हैं नाग

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- योगेश कुमार गोयल श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को प्रतिवर्ष देशभर में नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है, जो इस वर्ष 2 अगस्त को मनाया जा रहा है। हालांकि कुछ राज्यों में चैत्र तथा भाद्रपद शुक्ल पंचमी के दिन भी ‘नाग पंचमी’ मनाई जाती है। ज्योतिष के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं, इसीलिए मान्यता है कि नागपंचमी के दिन भगवान शिव के आभूषण नाग देवता की पूजा पूरे विधि-विधान से करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि के अलावा आध्यात्मिक शक्ति, अपार धन और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और सर्पदंश के भय से भी मुक्ति मिलती है। नागपंचमी के दिन कुछ स्थानों पर ‘कुश’ नामक घास से नाग की आकृति बनाकर दूध, घी, दही इत्यादि से इनकी पूजा की जाती है जबकि कुछ अन्य स्थानों पर नागों के चित्र या मूर्ति को लकड़ी के एक पाट पर स्थापित कर मूर्ति पर हल्दी, कुमकुम, चावल, फूल चढ़ाकर पूजन किया जाता है और पूजन के प...