विजय दशमी की प्रासंगिकता
- गिरीश जोशी
क्या हमारे पूर्वजों ने विजय दशमी उत्सव को शस्त्र और शास्त्र का पूजन करने भगवान राम की विजय का स्मरण कर रावण के पुतले का दहन करने की परंपरा का पालन करने के लिए हमारी जीवन पद्धति में शामिल किया था या इस उत्सव के कुछ ओर निहितार्थ रहे हैं। आज इस उत्सव की क्या प्रासंगिकता है ऐसे अनेक सवाल विशेषकर युवाओं के मन में उठते है । एक ओर इस उत्सव को सत्य की असत्य पर विजय,अच्छाई की बुराई पर विजय के रूप में मनाने की परंपरा हजारों वर्षों से हमारे देश में चल रही है। दूसरी ओर देश में आमतौर पर समाज की मानसिकता में विजिगीषु वृत्ति (विजयी भाव) दिखाई नहीं पड़ती है। विजिगीषु वृत्ति वाला समाज दासभाव से भरी निराशाजनक मानसिकता से ऊपर उठकर प्रत्येक कार्य सफल होने के लिए, हर संघर्ष में विजय होने की भावना से ही मैदान में उतरता है। लेकिन समान्यतः देश में पराक्रमी उद्यमशीलता,कर्मशीलता तथा साहस से जोखिम उठाक...