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अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस: मुकदमों का अंबार, न्याय के मंदिरों की समस्या अपार

अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस: मुकदमों का अंबार, न्याय के मंदिरों की समस्या अपार

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- रमेश सर्राफ धमोरा न्याय शब्द आशा और उम्मीद का प्रतीक है। जब किसी को लगता है कि उसकी बात अच्छी तरह सुनी जाएगी तथा उसे अपनी बात कहने का पूरा अवसर मिलेगा, तो वह न्याय है। न्याय शब्द एक नई रोशनी लेकर आता है। व्यक्ति के मन में एक उम्मीद जगाता है कि उसकी बात को पूरी तरह सुनकर ही निर्णय किया जाएगा। न्याय एक बहुत ही सम्मानित वह संतुष्टि प्रदान करने वाला शब्द है। आज भी जब दो व्यक्तियों के बीच में झगड़ा होता है तो दोनों एक दूसरे से कहते हैं कोर्ट में आ जाना फैसला हो जाएगा। यह लोगों की न्याय के प्रति आस्था का एक जीता जागता उदाहरण है। न्याय पाना हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार होता है। कोई भी सरकार या व्यवस्था तभी सफल मानी जाती है, जिसमें हर व्यक्ति को निष्पक्ष रूप से न्याय मिल सकें। हमारे देश में तो सदियों से न्यायिक प्रणाली बहुत मजबूत रही है। रजवाड़ों के जमाने की न्याय प्रक्रिया के उदाहरण हम आज भी देत...

मुकदमों के अंबार पर न्यायमूर्तियों की सकारात्मक पहल

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- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्तियों ने अदालतों में लंबित मुकदमों, अनावश्यक मुकदमों से न्यायालय का समय खराब करने और अंतिम निर्णय को लंबा खींचने की प्रवृति को लेकर गंभीर चिंता जताई है। इसे सकारात्मक पहल समझना चाहिए। एक मामले में सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील के उपस्थित नहीं होने पर जूनियर वकील के अगली तारीख मांगने पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति डीवाई चन्द्रचूड़ की तारीख पर तारीख वाली अदालत की छवि को बदलने वाली हालिया टिप्पणी इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाती है। जयपुर के एक समारोह में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की टिप्पणी की केसेज में डिस्पोजल नहीं डिसीजन करें कोर्ट महत्वपूर्ण है। न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की यह टिप्पणी भी मायने रखती है कि चालीस साल पहले वे वकील बने तब भी अदालतों की पेंडेंसी मुद्दा थी।आज 40 साल बाद भी स्थिति वहीं की वहीं है...

अदालतों में मुकदमों के अंबार को कम करने पर हो मंथन

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- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा लाख प्रयासों के बावजूद देश की अदालतों में मुकदमों का अंबार कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। एक मोटे अनुमान के अनुसार देश की अदालतों में सात करोड़ से अधिक केस लंबित हैं। इनमें से करीब 87 फीसदी केस देश की निचली अदालतों में लंबित हैं तो करीब 12 फीसदी केस राज्यों के उच्च न्यायालयों में लंबित चल रहे हैं। देश की सर्वोच्च अदालत में एक प्रतिशत केस लंबित हैं। पिछले दिनों जयपुर में आयोजित एक समारोह के दौरान न्यायालयीय प्रक्रिया और सर्वोच्च न्यायालय में पैरवी करने वाले वकीलों की फीस को लेकर अच्छी खासी चर्चा हुई। इस समय अदालत में सुबह साढ़े नौ बजे सुनवाई आरंभ करने की पहल पर भी विमर्श जारी है। सरकार ने मानसून सत्र में कुछ बदलावों के साथ मध्यस्थता विधेयक लाने का संकेत दिया है। न्यायालयों में मुकदमों के अंबार से सभी पक्ष चिंतित हैं। इस अंबार को कम करने के लिए कोई ऐसी रणनीत...