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श्रीराम जन्म भूमि मुक्ति के लिए संघर्ष और बलिदान का लंबा इतिहास, 161 वर्ष चली कानूनी लड़ाई

श्रीराम जन्म भूमि मुक्ति के लिए संघर्ष और बलिदान का लंबा इतिहास, 161 वर्ष चली कानूनी लड़ाई

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- रमेश शर्मा अयोध्या में रामजन्म स्थान मुक्ति के लिये सशस्त्र संघर्ष और बलिदान का लंबा इतिहास है। इतनी लंबी अवधि तक चलने वाली कानूनी लड़ाई का उदाहरण भी दुनिया में दूसरा नहीं है। कोई पांच सौ वर्षों के कुल संघर्ष में लगभग एक सौ साठ साल कानूनी लड़ाई के हैं। रामजन्म स्थान पर पक्के निर्माण के लिये पहली बार 1858 में प्रशासन को आवेदन दिया गया था और अदालत में पहला मुकदमा 1885 में दायर हुआ था। यह सारे विवरण लखनऊ और फैजाबाद के गजेटियर में मौजूद हैं। बाबरकाल में रामजन्म स्थान मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद बनाये जाने के बाद अकबरकाल में हिन्दुओं को एक चबूतरा बनाकर भजन करने की अनुमति मिल गई थी। वह चबूतरा औरंगजेब काल में नष्ट कर दिया गया, किंतु अवध के नवाब सदाअत अली के समय चबूतरा पुनः बहाल हो गया था। समय के साथ भारत की सभी स्थानीय सत्ताएं अंग्रेजों के अधीन हो गई थीं। तब 1858 में अंग्रेज कलेक्टर के समक्...
भैया दूज पर विशेषः यम के भय से मुक्ति का पर्व

भैया दूज पर विशेषः यम के भय से मुक्ति का पर्व

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- योगेश कुमार गोयल भाई-बहन के पावन संबंधों की मजबूती और प्रेमभाव को स्थापित करने वाला पर्व है ‘भैया दूज’। बहनें अपने भाइयों को तिलक लगाकर ईश्वर से उनकी दीर्घायु की कामना करती हैं। कहा जाता है कि इससे भाई यमराज के प्रकोप से बचे रहते हैं। इस वर्ष भैया दूज की तिथि को लेकर भी बड़ा भ्रम है। दरअसल कार्तिक कृष्ण द्वितीया तिथि इस साल 26 और 27 अक्टूबर को है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार 26 अक्टूबर को दिन में 2 बजकर 43 मिनट से भैया दूज पर्व मनाना शुभ रहेगा। यह शुभ मुहूर्त 27 अक्टूबर को दोपहर 1 बजकर 18 मिनट से साढ़े तीन बजे तक रहेगा। कई ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक भैया दूज 26 तारीख को ही मनाना शास्त्र के अनुकूल है। चूंकि कई स्थानों पर लोग उदया तिथि के हिसाब से यह पर्व मनाते हैं। ऐसे में जहां लोग उदया तिथि को मानते हैं, वहां 27 अक्टूबर को भैया दूज पर्व मनाया जा सकता है। दीपावली के दो दिन बाद अर्थात कार्ति...
भारत 2035 तक अंग्रेजियत से मुक्ति पाने की ओर अग्रसर

भारत 2035 तक अंग्रेजियत से मुक्ति पाने की ओर अग्रसर

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- डॉ. विपिन कुमार हमारी हिन्दी दुनिया की सबसे सरल और सहज भाषाओं में से एक है। हिन्दी की मूल भाषा संस्कृत है। वह दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा है। उसे 'देव भाषा' का भी दर्जा हासिल है। आज संपूर्ण विश्व में हिन्दी बोलने और समझने वालों की संख्या 80 करोड़ से भी अधिक है और यह चीनी के बाद सबसे बड़ी भाषा मानी जाती है। लेकिन, इस विषय में यदि हिंदी शोध संस्थान, देहरादून के महानिदेशक डॉक्टर जयंती प्रसाद नौटियाल की 'शोध अध्ययन - 2021' की मानें, तो आज हिन्दी विश्व की सबसे बड़ी भाषा बन चुकी है और उनका यह शोध केंद्रीय हिन्दी निदेशालय, भारत सरकार,आगरा द्वारा नियुक्त भाषा विशेषज्ञों द्वारा पूर्णतः प्रमाणित भी है। हिन्दी ने अपना यह स्वरूप कई सदियों के पश्चात हासिल किया है। इसकी लिपि देवनागिरी है, जो कई अन्य देशज भाषाओं में भी सहायक है। यही कारण है कि हिन्दी हमारी राष्ट्रीय एकता, अखंडता और अस्मिता की प्रतीक ...