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देश की सामर्थ्य के लिए चाहिए भाषाओं का पोषण

अवर्गीकृत
- गिरीश्वर मिश्र भाषा मनुष्य जीवन की अनिवार्यता है और वह न केवल सत्य को प्रस्तुत करती है बल्कि उसे रचती भी है। वह इतनी सघनता के साथ जीवन में घुलमिल गई है कि हमारा देखना-सुनना, समझना और विभिन्न कार्यों में प्रवृत्त होना यानी जीवन का बरतना उसी की बदौलत होता है। जल और वायु की तरह आधारभूत यह मानवीय रचना सामर्थ्य और संभावना में अद्भुत है। भारत एक भाग्यशाली देश है जहां संस्कृत, तमिल, मराठी, हिंदी, गुजराती, मलयालम, पंजाबी आदि जैसी अनेक भाषाएँ कई सदियों से भारतीय संस्कृति, परंपरा और जीवन संघर्षों को आत्मसात करते हुये अपनी भाषिक यात्रा में निरंतर आगे बढ़ रही हैं। भाषाओं की विविधता देश की अनोखी और अकूत संपदा है जिसकी शक्ति कदाचित तरह-तरह के कोलाहल में उपेक्षित ही रहती है। इन सबके बीच व्यापक क्षेत्र में संवाद की भूमिका निभाने वाली हिंदी का जन्म एक लोक-भाषा के रूप में हुआ था। वह असंदिग्ध रूप से एक सम...