ह्यूम से खरगे तक कांग्रेस का सफर, क्या खोया क्या पाया
- ऋतुपर्ण दवे
कभी लगता है कि कांग्रेस लक्ष्य से भटकी हुई है, कभी लगता है कि उम्मीद की किरण बाकी है। लेकिन सच यही है जनादेश वक्त के साथ अच्छे-अच्छों को हैसियत बता देता है। चाहे दल हों या राजनीतिज्ञ। आज कर्नाटक जीत के बाद भले कांग्रेस ऊर्जा से भरी होने का भ्रम पाल रही हो लेकिन इस कड़वे सच को मानना ही होगा कि जनसाधारण की रुचि दिनों दिन दूसरे दलों में ज्यादा दिखने लगी है। इसे कोई क्षेत्रवाद का विस्तार कहे या पूरे देश में बरसों बरस एकछत्र शासन कर चुके ऐसे राष्ट्रीय दल की विडंबना जो बहुत पहले अपने ही बिछाए जाल में खुद फंसती चली गई। कुछ यूं उलझी कि जनमानस के मस्तिष्क में कांग्रेस को लेकर उलझी गुत्थी कब सुलझेगी पता नहीं। ये सवाल बेहद अहम और राजनीतिक पण्डितों को भी समझ नहीं आता होगा कि गुणनफल क्या होगा?
देश की राजनीति और मतदाताओं की परिपक्व सोच ने तमाम दावों और रणनीतिकारों को कई बार धूल चटाया। आम...