केरल हाई कोर्ट का निर्णय : मुस्लिम पर्सनल लॉ के बीच पॉक्सो एक्ट
- डॉ. मयंक चतुर्वेदी
केरल हाई कोर्ट के निर्णय ने एक बार फिर यह विचार करने पर विवश किया है कि ''मुस्लिम पर्सनल लॉ'' को कितना स्वीकारें? क्योंकि इससे पहले जो दो अदालतों (पंजाब-हरियाणा और दिल्ली ) के निर्णय आए, उन्होंने देश में नई बहस को जन्म दिया था। किंतु कहना होगा कि अभी के फैसले ने संविधान के उस दायरे को ठीक से स्पष्ट कर दिया है, जिसका लाभ उठाकर कई मुस्लिम अपने यहां नाबालिग से संबंध स्थापित कर पर्सनल लॉ बोर्ड की आड़ ले बच निकलते थे। यह मुद्दा इसलिए भी अहम है क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ के बहाने एक समुदाय विशेष की नाबालिग लड़की के साथ शारीरिक संबंध बनाने वालों को निकाह के नाम पर छूट मिल जाती है, जबकि ''पॉक्सो एक्ट 2012'' में 18 साल से कम उम्र की लड़कियों से शारीरिक संबंध बनाना कानूनन अपराध है। इसके अतिरिक्त ''बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006'' कहता है, 18 साल से कम उम्र में शादी विधि विरोधी होन...