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जयंती विशेष: आज भी प्रासंगिक है प्रेमचंद का साहित्य

जयंती विशेष: आज भी प्रासंगिक है प्रेमचंद का साहित्य

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- डॉ. वंदना सेन महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद का साहित्य कालजयी है। उन्होंने देश और समाज के बारे में गंभीर चिंता करते हुए अपनी लेखनी चलाई। समाज की जटिलताओं को कहानी और उपन्यासों के माध्यम से जिस प्रकार से प्रस्तुत किया है, उसके बारे में निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि वे आज भी समसामयिक लगती हैं। कहा जाता है कि साहित्य वही है जो हमेशा प्रासंगिक बना रहे। प्रेमचंद ने समाज आधारित साहित्य की रचना की। जो आज भी नवोदित साहित्यकारों के लिए एक सार्थक दिशा का बोध कराता है। वास्तव में प्रेमचंद की रचनाएं समाज का दर्पण हैं। प्रेमचंद जी साहित्यकारों के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं कि साहित्यकार का काम केवल पाठकों का मन बहलाना नहीं है। यह तो भाटों और मदारियों, विदूषकों और मसखरों का ही काम है। साहित्यकार का पद इससे कहीं ऊंचा है, वह हमारा पथ प्रदर्शक होता है। वह हमारे मनुष्यत्व को जगाता है। हमार...
जयंती विशेष: राष्ट्रीय एकता के हिमायती सरदार पटेल

जयंती विशेष: राष्ट्रीय एकता के हिमायती सरदार पटेल

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- रमेश सर्राफ धमोरा भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने के कारण सरदार पटेल को राजनीतिक इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है। उनके कठोर व्यक्तित्व में संगठन कुशलता, राजनीति सत्ता तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति अटूट निष्ठा थी। जिस अदम्य उत्साह, असीम शक्ति से उन्होंने एकीकृत देश की प्रारम्भिक कठिनाइयों का समाधान किया। भारत की स्वतंत्रता संग्राम मे उनका महत्वपूर्ण योगदान था। सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 में गुजरात के नाडियाड में लेवा पट्टीदार जाति के एक जमींदार परिवार में हुआ था। वे अपने पिता झवेरभाई पटेल एवं माता लाड़बाई की चौथी संतान थे। सरदार पटेल ने करमसद में प्राथमिक विद्यालय और पेटलाद स्थित उच्च विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की थी। लेकिन उन्होंने अधिकांश ज्ञान स्वाध्याय से ही अर्जित किया। 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह हो गया। 22 साल की उ...