Friday, September 20"खबर जो असर करे"

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समग्र जीवन का उत्कर्ष है योग

समग्र जीवन का उत्कर्ष है योग

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- गिरीश्वर मिश्र आज के सामाजिक जीवन को देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि हर कोई सुख, स्वास्थ्य, शांति और समृद्धि के साथ जीवन में प्रमुदित और प्रफुल्लित अनुभव करना चाहता है। इसे ही जीवन का उद्देश्य स्वीकार कर मन में इसकी अभिलाषा लिए आत्यंतिक सुख की तलाश में सभी व्यग्र हैं और सुख है कि अक्सर दूर-दूर भागता नजर आता है। आज हम ऐसे समय में जी रहे हैं जब हर कोई किसी न किसी आरोपित पहचान की ओट में मिलता है। दुनियावी व्यवहार के लिए पहचान का टैग चाहिए पर टैग का उद्देश्य अलग-अलग चीजों के बीच अपने सामान को खोने से बचाने के लिए होता है। टैग जिस पर लगा होता है उसकी विशेषता से उसका कोई लेना-देना नहीं होता। आज हमारे जीवन में टैगों का अम्बार लगा हुआ है और टैग से जन्मी इतनी सारी भिन्नताएं हम सब ढोते चल रहे हैं। मत, पंथ, पार्टी, जाति, उपजाति, नस्ल, भाषा, क्षेत्र, इलाका समेत जाने कितने तरह के टैग भेद का आधार बन...

`मैं’ से `हम’ की अंतर्यात्रा

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- हृदय नारायण दीक्षित `मैं' से `हम' की अंतर्यात्रा आनंददायी है। `मैं' होना एकाकी है। एकाकी में उदासी है और विषाद है।`हम' सामूहिकता हैं और प्रसाद हैं । `मैं' होना दुखदायी है। ‘हम‘ होना विश्व का अंग होना है। ‘मैं‘ होना उल्लासहीनता है। ‘हम‘ होना उल्लासपूर्ण सांस्कृतिक अनुभूति है। ‘मैं‘ होना सिकुड़ना है और ‘हम‘ होना विस्तीर्णता है। आदिम काल में ‘मैं‘ भयभीत था। वह ‘मैं‘ से ‘हम‘ हुआ। सामूहिक हुआ। ‘हम‘ सामूहिकता है। फिर सामूहिक जीवन सामाजिक हुआ, सांस्कृतिक हुआ। मानव जाति में संवेदनशीलता बढ़ी। लोकजीवन व्यवस्थित हुआ। सोच विचार बढ़ा। तर्क प्रतितर्क हुए। वाद विवाद संवाद बढ़ा। दर्शन का विकास हुआ। जीवन नियमबद्ध हुआ। इसी का नाम धर्म हुआ। आधुनिक हिंदुत्व इसी परंपरा का अमृत प्रसाद है। मैं हूँ। यह हमारी अस्मिता है। मैं समुद्र की लहरों में उठती विलीन होती बूँद हूँ। बूँद इकाई है। इकाई लघुता है। लघुतम है। समुद्...