सभ्यतागत त्रासदी का एकात्म मानव दर्शन
- रजनीश कुमार शुक्ल
एकात्म मानववाद जैसी विचारधारा और अंत्योदय के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय की आज (25 सितंबर) जयंती है। उनका एकात्म मानव दर्शन मनुष्य को केंद्र में रखकर के संपूर्ण विश्व व्यवस्था का और उससे आगे बढ़ते हुए ब्रह्मांड व्यवस्था का मूल्याधिष्ठित किंतु व्यावहारिक विश्लेषण एवं दार्शनिकीकरण है। हम जानते हैं कि दर्शन के रूप में इसका सैद्धांतीकरण 1965 में आयोजित भारतीय जनसंघ के कालीकट अधिवेशन में हुआ था, जिसमें भारतीय जनसंघ के नीति प्रारूप के रूप में इस पर चर्चा की गई। चर्चा के अनंतर इसे भारतीय जनसंघ के दिशा निर्देशक सिद्धांत और दार्शनिक अधिष्ठान के रूप में स्वीकार किया गया। इसके तत्काल बाद मुंबई में देशभर के भारतीय जन संघ के कार्यकर्ताओं के समक्ष पं.दीनदयाल उपाध्याय जी ने एकात्म मानव दर्शन को विस्तार से प्रस्तुत किया। एकात्म का तात्पर्य एक ही होना है। एक ही प्रकार की चेतना , बुद...