Saturday, November 16"खबर जो असर करे"

Tag: Integral

एकात्म मानव दर्शन- एक दिव्य सिद्धांत

एकात्म मानव दर्शन- एक दिव्य सिद्धांत

अवर्गीकृत
- प्रवीण गुगनानी महान दार्शनिक प्लेटो के शिष्य व सिकंदर के गुरु अरस्तु ने कहा था - "विषमता का सबसे बुरा रूप है विषम चीजों को एक समान बनाने का प्रयत्न करना।" एकात्म मानववाद, विषमता को इससे बहुत आगे के स्तर पर जाकर हमें समझाता है। भारत को एक स्टेट या कंट्री से बढ़कर एक राष्ट्र के रूप में और इसके निवासियों को नागरिक नहीं अपितु परिवार सदस्य के रूप में मानने के विस्तृत दृष्टिकोण का ही अर्थ है एकात्म मानववाद। मानवीयता के उत्कर्ष की स्थापना यदि किसी राजनैतिक सिद्धांत में हो पाई है तो वह है पंडित दीनदयाल जी उपाध्याय का एकात्म मानववाद का सिद्धांत! एकात्म मानववाद को दीनदयालजी सैद्धांतिक स्वरूप में नहीं बल्कि आस्था के स्वरूप में लेते थे, यह कोई राजनैतिक सिद्धांत नहीं अपितु एक आत्मिक भाव है। अपने एकात्म मानववाद के अर्थों को विस्तारित करते हुए ही उन्होंने कहा था कि – “हमारी आत्मा ने अंग्रेजी राज्य के ...