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आपातकाल आधुनिक इतिहास की सबसे भयावह त्रासदी

आपातकाल आधुनिक इतिहास की सबसे भयावह त्रासदी

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- हृदयनारायण दीक्षित भारत में संविधान का शासन है। संविधान निर्माताओं ने न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका में खूबसूरत अधिकार विभाजन किए हैं। लेकिन आपातकाल आधुनिक इतिहास में संविधान को तहस-नहस करने की भयावह त्रासदी है। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने आज से 48 वर्ष पूर्व (25 जून 1975) पूरे देश को कैदखाना बना दिया था। संविधान (अनुच्छेद 352) में वाह्य आक्रमणों और देश के भीतर गंभीर आतंरिक अशांति के आधार पर आपातकाल घोषित करने की व्यवस्था थी। लेकिन तब देश में कोई आतंरिक अशांति नहीं थी। प्रधानमंत्री स्वयं आतंरिक अशांति से पीड़ित थीं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 12 जून 1975 को उनका संसदीय चुनाव अवैध घोषित कर दिया था। न्यायालय के अनुसार वे अनुचित साधनों द्वारा चुनाव जीती थीं। रायबरेली (उत्तर प्रदेश) की उनकी संसदीय सीट रिक्त घोषित कर दी गई थी। सत्ता पक्ष का एक धड़ा और संपूर्ण विपक्ष त्य...

धर्मनिरपेक्षता के नाम पर

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- वीरेन्द्र सिंह परिहार कहने को तो हम एक धर्मनिरपेक्ष देश में रहते हैं। तत्कालीन भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान इसे संविधान की प्रस्तावना में जुड़वा दिया था। धर्मनिरपेक्षता के गुण-दोष पर जाकर कि धर्मनिरपेक्षता के बजाय सही शब्द पंथनिरपेक्षता है, देखने की यह जरूरत है कि राज्य या शासन देश के नागरिकों के मामलों में धर्म के प्रति क्या सचमुच निरपेक्ष या बराबरी का व्यवहार करता है। उपरोक्त संदर्भाें में यूपीए राज के दौर में वह प्रसंग लोगों की याददाश्त में होगा, जब सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने वर्ष 2011 में एक ड्राफ्ट ‘‘साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिस्सा रोकथाम विधेयक 2011’’ प्रस्तुत किया था। कहने को तो इस विधेयक या ड्राफ्ट का उद्देश्य साम्प्रदायिक घटनाओं पर प्रभावी ढंग से रोक लगाना था। इस विधेयक का तात्पर्य यह था कि हिन्दू आक्रामक है जबकि मुस्लिम, ई...