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महात्मा गांधी की जीवन दृष्टि

महात्मा गांधी की जीवन दृष्टि

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- गिरीश्वर मिश्र गांधीजी का जन्म उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में हुआ था, आधी बीसवीं सदी तक के दौरान वे भारतीय समाज और राजनीति की धुरी बन गए और अब इक्कीसवीं सदी में हम सब उनके मिथक से रूबरू हो रहे हैं। विश्वव्यापी अंग्रेजी साम्राज्य से अहिंसक लड़ाई के साथ उनका स्वाधीन भारत का स्वप्न सत्य हुआ। देश में रचनात्मक बदलाव के लिए वे सबको साथ ले कर चलते रहे। उनकी स्वीकार्यता का दायरा आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक यानी जीवन के सभी क्षेत्रों में निरंतर बढ़ता गया। संयम और आत्म-बल के साथ कर्मवीर गांधी ने जो ठाना उसे पूरा करने के लिए सर्वस्व लगा दिया। समाज के स्तर पर मानव कर्तृत्व की विरल गाथा बना उनका निजी जीवन पीड़ा, संघर्ष और अनिश्चय से भरा था। देश के लिए समर्पण की मिसाल बने गांधीजी अंतिम जन की मानवीय गरिमा की रक्षा के लिए की मोर्चों पर डटे रहे। वे देश के विभाजन और आजादी के साथ शुरू हुई हिंसा से क्षुब्ध और...
हिन्दुत्व, भारतीय राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक पहचान

हिन्दुत्व, भारतीय राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक पहचान

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- डॉ. प्रशांत बड़थ्वाल  हिन्दुत्व ऐसी अवधारणा है जो भारतीय समाज और राजनीति में गहरी जड़ें जमाए हुए है। यह शब्द केवल एक धार्मिक विचारधारा का प्रतिनिधित्व नहीं करता, बल्कि एक जीवन दर्शन, सांस्कृतिक पहचान और राष्ट्रीय चेतना का भी प्रतीक है। हिन्दुत्व को समझने के लिए, जैसा कि कहा गया है, व्यक्ति को सर्वप्रथम 'स्व' को जागृत करना होगा। यह आत्म-जागृति की प्रक्रिया न केवल व्यक्तिगत स्तर पर महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज और राष्ट्र के स्तर पर भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। हिन्दुत्व की अवधारणा को समझने के लिए, हमें इसके ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक आयामों का गहन अध्ययन करना होगा। यह विचारधारा भारतीय उपमहाद्वीप के प्राचीन ज्ञान और परंपराओं से उत्पन्न हुई है, लेकिन समय के साथ इसने कई परिवर्तन और विकास देखे हैं। आधुनिक संदर्भ में, हिन्दुत्वने एक राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन का रूप ले लिया है, जो भा...
विवाह भारतीय समाज की मजबूती का आधार

विवाह भारतीय समाज की मजबूती का आधार

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- हृदयनारायण दीक्षित आधुनिक सभ्यता के प्रभाव शुभ नहीं हैं। जीवन के सभी आयामों में आधुनिकता का बुरा प्रभाव पड़ रहा है। परिवार खूबसूरत संस्था है। लेकिन आधुनिकता की चपेट में है। वस्तुतः आधुनिकता प्राचीनता का ही हिस्सा है और उसी का विकास है। भारत प्राचीन सभ्यता है। इस सभ्यता का सतत् विकास हुआ है। आधुनिकता और प्राचीनता को खण्डों में नहीं बांटा जा सकता। प्राचीन सभ्यता से विकसित होकर बनने वाली आधुनिकता स्वागत योग्य है। लेकिन वर्तमान भारत की आधुनिकता में विदेशी सभ्यता की वरीयता है। यह प्राचीन भारतीय सभ्यता, दर्शन और अनुभूति को पिछड़ापन मानती है। उधार की विदेशी आधुनिकता ने राष्ट्रजीवन के सभी क्षेत्रों को कुप्रभावित किया है। ऋग्वेद के रचनाकाल के पहले ही भारत की संस्कृति और सभ्यता का विकास हो चुका था। भारतीय सभ्यता में परिवार आत्मीय संगठन थे। परिवार के सभी सदस्यों के एक साथ रहने और रमने के सूत्र ...
श्रीअयोध्या धाम में नवनिर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर ने भारतीय समाज को एक किया है

श्रीअयोध्या धाम में नवनिर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर ने भारतीय समाज को एक किया है

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- प्रहलाद सबनानी 22 जनवरी 2024 का दिन भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा, क्योंकि इस दिन श्रीअयोध्या धाम में प्रभु श्रीरामलला के विग्रहों की एक भव्य मंदिर में समारोह पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी। इस प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में पूरे देश से धार्मिक, राजनैतिक एवं सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के शीर्ष नेतृत्व तथा समस्त मत, पंथ, सम्प्रदाय के पूजनीय संत महात्माओं की गरिमामय उपस्थिति रही थी। इससे निश्चित ही यह आभास हुआ है कि प्रभु श्रीराम मंदिर ने भारत में समस्त समाज को एक कर दिया है। इसे भारत के पुनरुत्थान के गौरवशाली अध्याय के प्रारम्भ का संकेत माना जा सकता है। सामान्यतः किसी भी भवन का ढांचा नीचे से ऊपर की ओर जाता दिखाई देता है परंतु प्रभु श्रीराम मंदिर के बारे में यह कहा जा रहा है कि प्रभु श्रीराम का यह मंदिर जैसे ऊपर से बनकर आया है और पृथ्वी पर स्थापित कर दिय...