Friday, November 22"खबर जो असर करे"

Tag: Indian foreign policy

भारतीय विदेश नीति में आक्रामकता जरूरी!

भारतीय विदेश नीति में आक्रामकता जरूरी!

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- डॉ. अनिल कुमार निगम विदेश में खालिस्तान समर्थित समूहों की बढ़ती गतिविधियां भारत की एकता, अखंडता और शांति व्यवस्था के लिए संकट बनती जा रही हैं। अमेरिका और ब्रिटेन के बाद कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में पाकिस्तान समर्थित खालिस्तान समूहों द्वारा भारत के खिलाफ षड़यंत्र तेज हो गया है। ऑस्ट्रेलिया में जिस तरीके से खालिस्तान समर्थकों ने भारतीयों पर हमला किया और राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया, वह हर भारतीय की आन, बान और शान पर न केवल हमला है बल्कि यह भारत की अस्मिता पर आघात है। दिल्ली में सिख फॉर जस्टिस रेफरेंडम 2020 और खालिस्तान के देश विरोधी स्लोगन लगाने के मामले में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने देश विरोधी गतिविधियों में शामिल कुछ संदिग्धों की पहचान भी की है। लेकिन सुरसा की मुंह की तरह बढ़ रही इस समस्या के प्रति केंद्र सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक गंभीर और आक्रामक होने की आवश्यकता है। विदित ह...
जी-20 : भारत क्यों न बने विश्व गुरु ?

जी-20 : भारत क्यों न बने विश्व गुरु ?

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- डॉ. वेदप्रताप वैदिक 01 दिसंबर से भारत जी-20 (बीस देशों के समूह) का अध्यक्ष बन गया है। सुरक्षा परिषद का भी वह इस माह के लिए अध्यक्ष है। भारतीय विदेश नीति के लिए यह बहुत सम्मान की बात है, लेकिन यह बड़ी चुनौती भी है। सुरक्षा परिषद आजकल पिछले कई माह से यूक्रेन के सवाल पर आपस में बंटी हुई है। उसकी बैठकों में शीतयुद्ध जैसा गर्मागर्म माहौल दिखाई पड़ता है। लगभग सभी प्रस्ताव आजकल ‘वीटो’ के शिकार हो जाते हैं, खास तौर पर यूक्रेन के सवाल पर। यूक्रेन का सवाल इस बार जी-20 की बाली में हुई बैठक पर छाया रहा। एक तरफ अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्र थे और दूसरी तरफ रूस और चीन। उनके नेताओं ने एक-दूसरे पर प्रहार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। फिर भी एक सर्वसम्मत घोषणा पत्र बाली सम्मेलन के बाद जारी हो सका। इस सफलता का श्रेय खुले तौर पर भारत को नहीं मिला लेकिन जी-20 ने भारत का रास्ता ही अपनाया। भारत तटस्थ रहा। न तो वह ...
भारतीय विदेश नीति की दो उपलब्धियां

भारतीय विदेश नीति की दो उपलब्धियां

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- डॉ. वेदप्रताप वैदिक भारतीय विदेश नीति की दो उपलब्धियों ने मेरा ध्यान बरबस खींचा है। एक तो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा भारत की सराहना और दूसरी भारत और ब्रिटेन के प्रधानमंत्रियों के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर हुई बातचीत। इन मुद्दों पर यह शक बना हुआ था कि भारत की नीति से इन दोनों राष्ट्रों को कुछ न कुछ एतराज जरूर है लेकिन वे संकोचवश खुलकर बोल नहीं रहे थे। अब यह स्पष्ट हो गया है कि रूस और ब्रिटेन, दोनों ही भारत की नीति से संतुष्ट हैं और उनके संबंध भारत से दिनोंदिन घनिष्ट होते चले जाएंगे। पहले हम रूस को लें। भारत ने यूक्रेन पर रूसी हमले का कभी दबी ज़ुबान से समर्थन नहीं किया लेकिन उसे अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्रों की तरह रूस के विरुद्ध आग भी नहीं बरसाई। उसने यूक्रेन से अपने हजारों नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकाला, उसे टनों अनाज भेंट किया और कुछ प्रस्तावों पर संयुक्तराष्ट्र संघ में ...