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सामाजिक समरसता का उत्सव

अवर्गीकृत
- गिरीश्वर मिश्र भारतीय पर्व और उत्सव अक्सर प्रकृति के जीवन क्रम से जुड़े होते हैं। ऋतुओं के आने-जाने के साथ ही वे भी उपस्थित होते रहते हैं। इसलिए भारत का लोकमानस उसके साथ विलक्षण संगति बिठाता चलता है जिसकी झलक गीत, नृत्य और संगीत की लोक-कलाओं और रीति-रिवाजों सबमें दिखती है। साझे की ज़िंदगी में आनंद की तलाश करने वाले समाज में ऐसा होना स्वाभाविक भी है। हमारा मूल स्वभाव तो यही सुझाता है कि हम प्रकृति में अवस्थित हैं और प्रकृति हममें स्पंदित है। थोड़ा विचार करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारा अनोखा उपहार, क्योंकि सारी तकनीकी प्रगति के बावजूद अभी तक जीवन का कोई विकल्प नहीं मिल सका है। यह अलग बात है कि प्रकृति या दूसरे आदमियों के साथ रिश्तों को लेकर कृतज्ञता का भाव अब दुर्लभ होता जा रहा है। फागुन के महीने की पूर्णिमा से यह उत्सव पूरे भारत में शुरू होता है और बड़े उल्लास के साथ मनाया जात...